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________________ १७४ ] सारभूतं चारित्रं तत इति दशमस्य समयसारसंज्ञकस्याचारस्य ।। १०१७।। इति श्रीमद्वर्याचार्यवर्यप्रणीते मूलाचारे श्रीवसुनन्द्याचार्यप्रणीताचारवृत्त्यास्यटीकासहिते दशमः समयसाराधिकारः ॥ ' करके शीघ्र ही सिद्धि प्राप्त कर लेते हैं । जिस कारण चारित्र से ही मोक्ष होता है उसी कारण से सभी का सारभूत चारित्र है । इस प्रकार दशवें समयसार अधिकार नामक आचार शास्त्र में संक्षेप में सारभूत चारित्र को ही कहा गया है ।" इस प्रकार श्री वसुनन्वि आचार्य प्रणीत 'आचारवृत्ति' नामक टीका सहित श्रीमान् वट्टकेराचार्यवर्य प्रणीत इस मूलाचार ग्रन्थ में 'समयसार ' नामक दशवाँ अधिकार पूर्ण हुआ । १. ख-ग-पुस्तकेऽस्य स्थानेऽयं पाठः । इति वसुनन्दिविरचितायामाचारवृत्तौ दशमः परिच्छेदः । २. फलटन से प्रकाशित प्रति में यह गाथा अधिक है। Jain Education International [ मूलाचारे रथा है और यतियों ने जिसका प्रणाम करता हूँ । free यरकहिय मत्थंगणधर रचियं उदीहिं अणुचरिदं । व्विाण हेदुभूदं सुमहमखिलं पणिवदामि ॥ अर्थ - परम तीर्थंकर देव ने जिसका अर्थरूप से कथन किया है, गणधरदेव ने जिसे सूत्ररूप में अभ्यास किया है, निर्वाण के लिए कारणभूत ऐसे सम्पूर्ण द्वादशांगश्रुत को मैं For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001839
Book TitleMulachar Uttarardha
Original Sutra AuthorVattkeracharya
AuthorGyanmati Mataji
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages456
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Ethics, Religion, & Principle
File Size10 MB
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