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________________ समयसाराधिकारः] [१६५ व्रतानि शीलानि गुणाश्च यस्माद्भिक्षाचर्याया विशुद्ध्यां सत्यां तिष्ठन्ति तस्माद्भिक्षाचर्या संशोध्य साधुः सदा विहरेत् । भिक्षाचर्याशुद्धिश्च प्रधानं चारित्रं सर्वशास्त्रसारभूतमिति ॥१००५॥ तथैतदपि विशोध्याचरेदित्याह भिक्कं वक्कं हिययं सोधिय जो चरदि णिच्च सो साहू। एसो सुट्ठिव साहू भणिओ जिणसासणे भयवं ॥१००६॥ भिक्षां गोचरीशुद्धि वाक्यं वचनशुद्धि हृदयं मनःशुद्धि विशोध्य यश्चरति चारित्रोद्योगं करोति साधुनित्यं स एष सुस्थितः सर्वगुणोपेतः साधुर्भणितो भगवान्, क्व ? जिनशासने सर्वज्ञागमे इति ॥१००६॥ तथैतदपि सुष्ठु ज्ञात्वा चरत्वित्याह दव्वं खेत्तं कालं भावं सत्ति च सुट्ठ णाऊण । झाणज्झयणं च तहा साहू चरणं समाचरऊ ॥१००७॥ द्रव्यमाहारशरीरादिकं क्षेत्र जांगलरूपादिकं कालं सुषमासुषमादिकं शीतोष्णादिकं भावं परिणाम च सुष्ठ ज्ञात्वा ध्यानमध्ययनं तथा ज्ञात्वा साधुश्चरणं समाचरतु । एवं कथितप्रकारेण चारित्रशुद्धिर्भवतीति ॥१००७॥ तथोभयत्यागफलमाह आधारवृत्ति-आहारचर्या के निर्दोष होने पर ही व्रत, शील और गुण रहते हैं, इसलिए मुनि सदैव आहारचर्या को शुद्ध करके विचरण करे। अर्थात् आहार की शुद्धि ही प्रधान है, वही चारित्र है और सभी में सारभूत है। इसी तरह इनका भी शोधन करके आचरण करे, सो ही कहते हैं गाथार्थ-जो आहार, वचन और हृदय का शोधन करके नित्य ही आचारण करते हैं वे ही साधु हैं । जिन शासन में ऐसे सुस्थित साधु भगवान कहे गये हैं ॥१००६॥ ___आचारवृत्ति-आहारशुद्धि, वचनशुद्धि और मनःशुद्धि का शोधन करते हुए जो हमेशा चारित्र में उद्यमशील रहते हैं वे ही सर्वगुणों से समन्वित साधु जिनागम में भगवान कहे जाते हैं। तथा इन्हें भी अच्छी तरह जानकर आचरण करो, सो ही कहते हैं गाथार्थ–साधु द्रव्य, क्षेत्र, काल, भाव और शक्ति को अच्छी तरह समझकर भलीप्रकार से ध्यान, अध्ययन और चारित्र का आचरण करे॥१००७।। प्राचारवृत्ति-द्रव्य-आहार, शरीर आदि; क्षेत्र--जांगल, रूप आदि; कालसुषमा आदि व शीत, उष्ण आदि; भाव-परिणाम; शक्ति-स्वास्थ्य बल आदि; इन्हें अच्छी तरह जानकर तथा ध्यान और अध्ययन को जानकर साधु चारित्र का आचरण करे। इस प्रकार की कथित विधि से चारित्रशुद्धि होती है। तथा उभयत्याग का फल कहते हैं Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001839
Book TitleMulachar Uttarardha
Original Sutra AuthorVattkeracharya
AuthorGyanmati Mataji
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages456
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Ethics, Religion, & Principle
File Size10 MB
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