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________________ [ मूलाचार निलितशेपकर्माण इति ॥६६७॥ बन्धं बन्धकारणं च प्रतिपादयन्नाह जोगणिमित्तं गहणं जोगो मणवयणकायसंभूदो। भावणिमित्तो बंधो भावो रदिरागदोसमोहजुदो ॥६६॥ कर्मणो ग्रहणं योगनिमित्तं योगहेतुकं, योगः प्रकृतिबन्धं प्रदेशबन्धं च करोतीति। अथ को योग इत्याशंकायामाह-योगश्च मनोवचनकायेभ्यः सम्भूतो मनःप्रदेशपरिस्पन्दो वाक्प्रदेशपरिस्पन्दः कायप्रदेशपरिस्पन्दः 'मनोवाक्कायकर्म योग' इति वचनात् । भावनिमित्तो भावहेतुको बन्धः संश्लेषः स्थित्यनुभागरूप: 'स्थित्यनुभागो कषायत' इति वचनात् । अथ को भाव इति प्रश्ने भावो रतिरागद्वेषमोहयुक्तो मिथ्यात्वासंयमकषाया इत्यर्थ इति ॥९६८॥ कर्मणः परिणामो न तु जीवस्येति प्रतिपादयन्नाह जीवपरिणामहेद् कम्मत्तण पोग्गला परिणमंति। ण दुणाणपरिणदो पुण जीवो कम्मं समादियदि ॥६६६॥ आदि में निष्कम्प होने से ऐसे श्रमण अतिशीघ्र ही अशेष कर्मों का निर्मलन करके सिद्ध हो गये हैं। अब बन्ध और बन्ध के कारणों को कहते हैं गाथार्थ-कर्मों का ग्रहण योग के निमित्त से होता है। वह योग मन वचन काय से उत्पन्न होता है । कर्मों का बन्ध भावों के निमित्त से होता है और भाव रति, राग, द्वेष एवं मोह सहित होता है ॥६६८॥ आचारवृत्ति-कर्मों का ग्रहण योग के कारण होता है। वह योग प्रकृतिबन्ध और प्रदेशबन्ध करता है। वह योग क्या है ? ऐसी आशंका होने पर कहते हैं-वह योग मन, वचन और काय से उत्पन्न होता है अर्थात् मन के निमित्त से आत्मप्रदेशों का परिस्पन्दन, वचनयोग से आत्मप्रदेशों का परिस्पन्दन और काययोग से आत्मप्रदेशों का परिस्पन्दन होना योग है। "मन. वचन-काय के कर्म का नाम योग है" ऐसा सूत्रकार का वचन है। भाव के निमित्त से बन्ध अर्थात् आत्मा के साथ संश्लेष-सम्बन्ध होता है जो स्थिति और अनुभाग रूप है। "स्थिति और अनुभाग कषाय से होते हैं" ऐसा वचन है। भाव क्या है ? रति, राग, द्वेष और मोहयुक्त परिणाम भाव कहलाते हैं अर्थात् मिथ्यात्व, असंयम और कषाय भाव स्थितिबन्ध और अनुभागबन्ध के कारण हैं। कर्म के परिणाम होते हैं न कि जीव के ऐसा प्रतिपादन करते हैं गाथार्थ-जीव के परिणाम के निमित्त से पुद्गल कर्मरूप से परिणमन करते हैं। ज्ञान-परिणत हुआ जीव तो कर्म ग्रहण करता नहीं है ॥६६६॥ १ तत्त्वार्थसूत्र, अ. ६, सूत्र १। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001839
Book TitleMulachar Uttarardha
Original Sutra AuthorVattkeracharya
AuthorGyanmati Mataji
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages456
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Ethics, Religion, & Principle
File Size10 MB
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