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________________ [भूताबारे कथात्र सम्बध्यते कर्वटकथाः खेटकथास्तथा संवाहनद्रोणमुखादिकथाश्च, तानि शोभनानि निविष्टानि सुदुर्गाणि वीरपुरुषाधिष्ठितानि सुयंत्रितानि परचक्राभेद्यानि बहुधनधान्यार्थनिचितानि सर्वथायोध्यानि न तत्र प्रवष्टं कश्चिदपि शक्नोतीत्येवमादिवाक्प्रलापाः खेटादिकथाः। राज्ञां कथाः नानाप्रजापतिप्रतिबद्धवचनानि स राजा प्रचंड: शूरश्चाणक्यनिपुणश्चारकुशलो योगक्षेमोद्यतमतिश्चतुरंगबलो विजिताशेषवैरिनिवहो न तस्य पुरतः केनापि स्थीयते इत्येवमादिकं वचनं राजकथाः । चौराणां कथाः-स चोरो निपुणः वातकुशलः सच वर्मनि ग्रहणसमर्थः पश्यतां गृहीत्वा गच्छति तेन सर्व भाक्रांता इत्येवमादिकथनं चौरकथाः। जनपदो देशः, नगर प्राकाराद्युपलक्षितं, आकरो वज्रपद्मरागसुवर्णकुंकुममुक्ताफललवणचन्दनादीनामुत्पत्तिस्थानं तेषां कथास्तत्प्रतिबद्ध'कथार्जनानयनयानादिवाक्प्रबंधास्तत्र रत्नं सुलभं शोभनमनघं मुक्ताफलं तत्र जात्यमुत्पद्यते तत्र कुंकुमादिकं समहर्घमत्रानीतं बहुमूल्यं फलदं तन्नगरं सुरक्षितं प्रासादादिविराजमानं दिव्यवनिताजनाधिष्ठितं, स देशो रम्यः सलभान्नपानो मनोहरवेषः प्रचुरगन्धमाल्यादिकः सर्वभाषाविदग्धमतिरित्येवमादिवंचनप्रबंधो जनादनगराकरकथा:, तासु कथासु न रज्यंति धीरा इत्युत्तरेण संबंधः ।।८५७॥ हैं। इन सम्बन्धी कथा करना खेटकथा, कर्वटकथा हैं। तथा संवाहन, द्रोणमुख आदि की कथाएँ भी ग्रहण कर लेनी चाहिए। जैसे कि ये खेट आदि देश बहुत ही सुन्दर बने हैं, किले सहित हैं, वीर पुरुषों से अधिष्ठित हैं, सब तरह से नियन्त्रित हैं, पर-चक्र से अभेद्र हैं, बहुत से धन-धान्य आदि पदार्थों से भरे हुए हैं, सब प्रकार से अजेय हैं, वहां पर कोई भी शत्रु प्रवेश नहीं कर सकते हैं इत्यादि रूप से वचन बोलना खेटादि कथाएँ हैं। नाना राजाओं से सम्बन्धित वचन बोलना राजकथा है। वह राजा बहुत ही प्रतापी है, शूर है, चाणक्य के समान निपुण है, चार-संचार में कुशल है, योग और क्षेम में अपनी बुद्धि को लगानेवाला है, चतुरंग सेना से सहित है, सर्व बैरियों को जीत चुका है, उसके सामने कोई भी खड़ा नहीं रह सकता है इत्यादि प्रकार के वजन बोलना राजकथा है। चोरों की कथा करना जैसे-वह चोर निपुण है, सेंध लगाने में प्रवीण है, वह तो मार्ग में ही लूटने में कुशल है, देखते-देखते लेकर भाग जाता है, उसने सभी को त्रस्त कर रखा है इत्यादि बातों का कथन करना चोरकथा है । जनपद-देश, नगर-जो परकोटे से घिरा हुआ है, आकर-हीरा, पन्ना, सोना, कुंकुम, मोती, नमक, चन्दन आदि इनकी उत्पत्ति के स्थानविशेष इनसे सम्बन्धित कथाएँ करना; रत्नों के अर्जन करने का, उनके लाने-ले जाने आदि की बातें. करना, जैसे कि वहाँ पर रत्न सुलभ हैं, सुन्दर और मूल्यवान हैं, उत्तम-उत्तम मोती मिलते हैं, वहाँ कुंकुम वगैरह वस्तुएँ बेशकीमती मिलती हैं यहाँ पर लाने से उनकी बहुत ही कीमत होगी, वे उत्तम फल देनेवाली वस्तुएँ हैं। वह नगर सुरक्षित है उसमें बड़े-बड़े महल आदि शोभित हो रहे हैं. वे दिव्य स्त्रियों से मनोहर हैं। वह देश रम्य है, वहाँ पर अन्न-पान सुलभ है, वहां के लोग मनोहर वेश धारण करते हैं, वहाँ पर प्रचुर मात्रा में गन्ध, माला आदि वस्तुएं प्र योग में लायी जाती हैं, वहाँ के लोग सभी भाषाओं में पण्डित हैं, इत्यादि रूप से बचन बोलना जनपद, नगर और आकर कथा कहलाती हैं। धीर मुनि इन कथाओं में राग नहीं करते हैं, ऐसा अगली गाथा से यहाँ पर सम्बन्ध कर लेना चाहिए। - १. क. प्रतिबद्धार्जन। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001839
Book TitleMulachar Uttarardha
Original Sutra AuthorVattkeracharya
AuthorGyanmati Mataji
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages456
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Ethics, Religion, & Principle
File Size10 MB
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