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नगार भावनाधिकारः ]
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अक्षिभिर्नयनैः पश्यन्तो निरूपयन्तः सद्रूपमसद्रूपं वा योग्यमयोग्यं च वस्तुजातं निरूपयन्तोऽपि दृष्टिरहिता इव तिष्ठति, कर्णेः श्रोत्रेन्द्रियैर्बहुविधानि श्रव्याणि युक्तान्ययुक्तानि च शृण्वन्तो नानाप्रकारशब्दान् कर्णशष्कुल्या गृह्णन्तोऽपि तिष्ठति मूकभूता इव जिह्वानयन कर्णरहिता' इव, न ते मुनयो व्यक्त कुर्वन्ति लौकिकीः कथा लोकव्यापारानिति ॥६५६ ।।
कारता लौकिक्यः कथा इत्याशंकायामाह ---
sfreeहा प्रत्यकहा भत्तकहा खेडकव्वाणं च ।
रायकहा चोरकहा जणवदणयरायर कहाम्रो ॥ ६५७॥
स्त्रीणां कथाः सुरूपास्ताः सोभाग्ययुक्ता मनोरमा उपचारप्रवणा कोमलालापा इत्येवमादिकथनं वनिताकथाः । अर्थस्य कथा अर्थार्जनोपायकथनप्रबंंधा: सेवया वाणिज्येन लेखवृत्त्या कृषिकर्मणा समुद्रप्रवेशेन धातुवादेन मंत्रतंत्रप्रयोगेण वा इत्येवमाद्यर्यार्जननिमित्तवचनान्यर्थकथाः । भक्तस्य कथा रसनेन्द्रिय लुब्धस्य चतुविधाहारप्रतिबद्धवचनानि तत्र शोभनं भक्ष्यं खाद्यं लेह्यं पेयं सुरसं मिष्टमतीवरसोत्कटं जानाति सा संस्कर्त बहूनि व्यंजनानि तस्या हस्तगतमशोभनमपि शोभनं भवेत्तस्य च गृहे सर्वमनिष्टं दुर्गन्धं सर्वं स्वादुरहितं विरसमित्येवमादिकथनं भक्तकथाः । खेटं नद्यद्रिवेष्टितं 'नदीपर्वतैरवरुद्धः प्रदेश, कर्वटं सर्वत्र पर्वतेन वेष्टितो देश:
आचारवृत्ति - वे मुनि नेत्रों से सत्रूप अथवा असत् रूप को, योग्य अथवा अयोग्य वस्तुओं को देखते हुए भी नेत्ररहित के समान रहते हैं । कानों से सुनने योग्य युक्त अथवा अयुक्त ऐसे नाना प्रकार के शब्दों को सुनते हुए भी, कर्ण- शष्कुली से उन्हें गृहण करते हुए भी, वे न सुनते हुए के समान ही रहते हैं । वे मूक पुरुष के सदृश - जिह्वा, नेत्र और कान से रहित हुए के समान ही तिष्ठते हैं । वे मुनिजन कुछ भी देखे सुने हुए उचित-अनुचित को न व्यक्त ही करते हैं और नवे लौकिक कथाएँ ही करते हैं ।
a लौकिक कथा कौन-सी हैं ? सो ही बताते हैं-
गाथार्थ - स्त्रीकथा, अर्थकथा, भोजनकथा, खेटकर्वटकथा, चोरकथा, जनपदकथा, नगरकथा और आकरकथा ये लौकिक कथाएँ हैं ।। ८५७ ॥
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आचारवृत्ति-वे स्त्रियाँ सुन्दर रूपवाली हैं, सौभाग्य सहित हैं, मनोरमा हैं उपचार में कुशल हैं, कोमल वचन बोलनेवाली हैं इत्यादि रूप से स्त्रियों की कथा करना स्त्रीकथा है । धन उपार्जन के उपाय से सम्बन्धित कथा अर्थकथा है । सेवा, व्यापार, लेखनवृत्ति, खेती, समुद्र प्रवेश, धातुवाद - रसायनप्रयोग, मन्त्र-तन्त्रप्रयोग इत्यादि प्रकारों से धन के उपार्जन हेतु वचन बोलना अर्थकथा है । रसना इन्द्रिय से लुब्ध होकर चार प्रकार के आहार से सम्बन्धित वचन बोलना, जैसे वहाँ पर अच्छे-अच्छे खानेयोग्य - भक्ष्य, खाद्य, लेह्य, य, सुरस, मीठे, अतीव रसदार पदार्थ हैं, वह महिला बहुत प्रकार के व्यंजन पकवान बनाना जानती है, उसके हाथ में पहुँची वस्तु खराब भी अच्छी बन जाती है, किन्तु अमुक के घर में सर्व ही भोजन अनिष्ट, अप्रिय, दुर्गंधित है, सभी पदार्थ स्वाद रहित विरस हैं इत्यादि प्रकार से भोजन सम्बन्धी वचन बोलना भक्तकथा है। नदी और पर्वत से वेष्टित प्रदेश खेट है तथा सर्वत्र पर्वत से वेष्टित देश को कर्वट कहते १. क० जिल्ह्वाकर्णनयन रहिता ।
२. क० नद्या पर्वतेनावरूद्धः
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