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अमगार भावनाधिकारः ]
तथा
धूवण वमण विरेयण श्रंजण अब्भंग लेवणं चेव । त्थु वत्थियकम्मं सिरवेज्भं अप्पणो सव्वं ॥ ८४० ॥
मुखस्य नयनयोदतानां च धावनं शोधनं प्रक्षालनं, उद्वर्तनं सुगंधद्रव्यादिभिः शरीरोद्धर्षणं, पादप्रक्षालनं कुंकुमादिरागेण पादयोनिर्मलीकरणं, संवाहनमंगमर्दनं पुरुषेण शरीरोपरिस्थितेन मर्दनं परिमर्दनं करमुष्टिभिस्ताडनं काष्ठमययंत्रेण वा पीडनमित्येवं सर्वं शरीरसंस्थापनं शरीरसंस्कारं साधवो न कुर्वतीति
संबंध: ॥ ८३ ॥
धूपनं शरीरावयवानामुपकरणानां च धूपेन संस्करणं, वमनं कंठशोधनाय स्वरनिमित्तं वा भुक्तस्य छर्दनं, विरेचनमोषधादिनाधोद्वारेण मलनिर्हरणं, अंजनं नयनयोः कज्जलप्रक्षेपणं, अभ्यंगनं सुगंधतैलेन शरीरसंस्करणं, लेपनं चंदनकस्तूरिकादिना शरीरस्य म्रक्षणं, नासिकाकर्म, वस्तिक शलाकात्तिका क्रिया, शिरावेध: शिराभ्यो रक्तापनयनं इत्येवमाद्यात्मनः सर्वं शरीरसंस्कारं न कुर्वतीति ॥ ८४० ॥
rajasgeet fi कुर्वन्तीत्याशंकायामाह -
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उप्पण्णम्मिय वाही सिरवेयण कुक्खिवेयणं चेव ।
अधियासिंति सुधिदिया कार्यातिगिछं ण इच्छंति ॥ ८४१ ॥
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उत्पन्नेऽपि व्याधी ज्वर रोगादावुपस्थितेऽपि तथा शिरोवेदनायां कुक्षिवेदनायां चोपस्थितायामन्यधूप देना, वमन करना, विरेचन करना, अंजना लगाना, तैल लगाना, लेप करना, नस्य लेना, वस्ति कर्म करना, शिरावेध करना ये सब अपने शरीर के संस्कार हैं । ।।८३६ ८४०॥ श्राचारवृत्ति - मुख धोना, नेत्रों का शोधन करना, दाँतों को स्वच्छ करना, सुगन्धित द्रव्य आदि चूर्णों से शरीर में उबटन करना, पैर धोना, कुंकुम केशर आदि से पैरों को निर्मल करना अथवा मेंहदी आदि से रंगना, पुरुषों से शरीर दबवाना, अन्य जनों द्वारा हाथ की मुट्ठी से या काठमययन्त्र से शरीर को मर्दित कराना अर्थात् पगचप्पी आदि प्रकारों से शरीर की सेवा करवाना, ये सभी शरीर के संस्कार साधु नहीं करते हैं । तथा शरीर के अवयवों को और उपकरणों को धूप से संस्कारित करना, कण्ठ की शुद्धि के लिए या सुन्दर स्वर के लिए वमन करना, औषधि आदि प्रयोग से विरेचन करना अर्थात् जुलाब लेना, नेत्रों में कज्जल या सुरमा डालना, सुगन्धित तेल से शरीर को सुन्दर बनाना, चन्दन कस्तूरी आदि वस्तुओं का शरीर पर लेप करना, नस्य लेना - सूंघनी सूँघना, शलाका तथा वृत्ति के द्वारा मल निकालना वस्तिकर्म है । शिराओं में से रक्त निकालना इत्यादि रूप से अपने शरीर के सभी प्रकार के संस्कारों को साधु नहीं करते हैं ।
यदि ऐसी बात है तो व्याधि के उत्पन्न होने पर वे क्या करते हैं ? ऐसी आशंका होने पर कहते हैं
गाथार्थ - रोग के होने पर, सिर की या उदर की वेदना के होने पर, वे धेर्यशाली मुनि सहन करते हैं किन्तु शरीर की चिकित्सा नहीं चाहते हैं । ॥ ८४१ ||
प्राचारवृत्ति - शरीर में ज्वर आदि रोगों के हो जाने पर अथवा शिर में पीड़ा अथवा
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