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________________ statuerfधकारः ] प्रत्याख्याननिर्युक्ति व्याख्याय कायोत्सर्गनिर्युक्तिस्वरूपं प्रतिपादयन्नाह- पच्चक्खाणणिजुती एसा कहिया मए समासेण । काओसग्गणित्ती एतो उड्ढं पवक्खामि ॥ ६४६ ॥ प्रत्याख्याननिर्युक्तिरेषा कथिता मया समासेन कायोत्सर्गनिर्युक्तिमित ऊर्ध्वं प्रवक्ष्य इति' । स्पष्टोर्थः ।। ६४ε॥ णावणा दव्वे खेत्ते काले य होदि भावे य । एसो काउस्सग्गे णिकखेवो छव्विहो णेश्रो ।। ६५०॥ [ ४७५ खरपरुषादिसावद्यनामकरणद्वारेणागताती चारशोधनाय कायोत्सर्गो नाममात्रः कायोत्सर्गो वा नामकायोत्सर्गः, पापस्थापनाद्वारेणा 'गतातीचा रशोधननिमित्तकायोत्सर्ग परिणत प्रतिबिंबता स्थापनाकायोत्सर्गः सावद्यद्रव्यसेवाद्वारेणागतातीचारनिर्हरणाय कायोत्सर्गः, कायोत्सर्गव्यावर्णनीयप्राभृतज्ञोऽनुपयुक्तस्तच्छरीरं वा द्रव्य कायोत्सर्गः, सावद्यक्षेत्र से वनादागतदोषध्वंसनाय कायोत्सर्गः कायोत्सर्गपरिणत सेवित क्षेत्र वा क्षेत्रकायोत्सर्गः, सावद्यकालाचरणद्वारागतदोषपरिहाराय कायोत्सर्गः कायोत्सर्गं परिणतसहित कालो वा कालकायोत्सर्गः, . प्रत्याख्यान निर्युक्ति का व्याख्यान करके अब कायोत्सर्ग नियुक्ति का स्वरूप बताते हैं गाथार्थ —- मैंने संक्षेप से यह प्रत्याख्याननियुक्ति कही है। इसके बाद कायोत्सर्ग निर्युक्ति कहूँगा || ६४६॥ प्राचारवृत्ति- -गाथा सरल है । गाथार्थ - नाम, स्थापना, द्रव्य, क्षेत्र, काल और भाव ये छह हैं । कायोत्सर्ग में यह छह प्रकार का निक्षेप जानना चाहिए || ६५० ॥ Jain Education International श्राचारवृत्ति- तीक्ष्ण कठोर आदि पापयुक्त नामकरण के द्वारा उत्पन्न हुए अतीचारों का शोधन करने के लिए जो कायोत्सर्ग किया जाता है वह नाम कायोत्सर्ग है अथवा कायोत्सर्ग यह नामकरण करना नाम कायोत्सर्ग है । पापस्थापना - अशुभ या सरागमूर्ति की स्थापना द्वारा हुए अतीचारों के शोधननिमित्त कायोत्सर्ग करना स्थापना कायोत्सर्ग है अथवा कायोत्सर्ग से परिणत मुनि की प्रतिमा आदि स्थापना कायोत्सर्ग है। सदोष द्रव्य के सेवन से उत्पन्न हुए अतीचारों को दूर करने के लिए जो कायोत्सर्ग होता है वह द्रव्य कायोत्सर्ग है अथवा कायोत्सर्ग के वर्णन करनेवाले प्राभृत का ज्ञानी किन्तु उसके उपयोग से रहित जीव और उसका शरीर ये द्रव्य कायोत्सर्ग हैं । सदोष क्षेत्र के सेवन से होने वाले अतीचारों को नष्ट करने के लिए कायोत्सर्ग क्षेत्र कायोत्सर्ग है अथवा कायोत्सर्ग से परिणत हुए मुनि से सेवित स्थान क्षेत्र 1. कायोत्सर्ग है | सावद्य काल के आवरण द्वारा उत्पन्न हुए दोषों का परिहार करने के लिए कायोत्सर्ग काल-कायोत्सर्ग है अथवा कायोत्सर्ग से परिणत हुए मुनि सहित काल कालकायोत्सर्ग है । मिथ्यात्त्र आदि अतीचारों के शोधन करने के लिए किया गया कायोत्सर्ग भाव 1 है १ क इति । नामादिभिः कायोत्सर्गं निरूपयितुमाह - १ । २ क णातीचार । ३ क 'बिवस्था' । For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001838
Book TitleMulachar Purvardha
Original Sutra AuthorVattkeracharya
AuthorGyanmati Mataji
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages580
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Ethics, Religion, & Principle
File Size12 MB
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