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षडावश्यकाधिकारः]
[४७१ परिमाणगतं प्रमाणसहितं षष्ठाष्टमदशमद्वादशपक्षार्द्धपक्षमासादिकालादिपरिमाणेनोपवासादिकरणं परिमाणगतं प्रत्याख्यानं, अपरिशेषं यावज्जीवं चतुर्विधाऽऽहारादित्यागोऽपरिशेषं प्रत्याख्यानम् ॥६३६॥
तथा
अद्धाणगवं अध्वानं गतमध्वगतं मार्गविषयाटवीनद्यादिनिष्क्रमणद्वारेणोपवासादिकरणं । अध्वगतं नाम प्रत्याख्यानं नवमं, सहहेतुना वर्तत इति सहेतुकमुपसर्गादिनिमित्तापेक्षमुपवासादिकरणं सहेतकं नाम प्रत्याख्यानं दशमं विजानीहि, एवमेतान्प्रत्याख्यानकरणविकल्पान्विभक्तियुक्तान्तथानगतान परमार्थरूपाजिनमते विजानीहीति ॥६४०॥
पूनरपि प्रत्याख्यानकरणविधिमाह--
विणएण तहणुभासा हवदि य अणुपालणाय परिणामे।
एवं पच्चक्खाणं चदुविधं होदि णादव्वं ॥६४१।।
विनयेन शुद्धं तथाऽनुभाषयाऽनुपालनेन परिणामेन च यच्छुद्धं भवति तदेतत्प्रत्याख्यानं चतुर्विधं भवति ज्ञातव्यं । यस्मिन् प्रत्याख्याने विनयेन सार्द्धमनुभाषाप्रतिपालनेन सह परिणामशुद्धिस्तत्प्रत्याख्यानं चतुर्विधं भवति ज्ञातव्यमिति ॥६४१॥
विनयप्रत्याख्यानं तावदाह
किदियम्म उवचारिय विणो तह णाणदंसणचरित्ते । पंचविधविणयजुत्तं विणयसुद्धं हवदि तं तु ॥६४२॥
के प्रसंग में उपवास आदि करना अर्थात् इस वन से बाहर पहुँचने तक मेरे चतुर्विध आहार का त्याग है या इस नदी से पार होने तक चतुर्विध आहार का त्याग है ऐसा उपवास करना सो अध्वानगत प्रत्याख्यान है।
१०. हेतु सहित उपवास सहेतुक हैं यथा उपसर्ग आदि के निमित्त से उपवास आदि करना सहेतुक नाम का प्रत्याख्यान है।
विभक्ति से युक्त अन्वर्थ, नाम से सहित तथा परमार्थ रूप प्रत्याख्यान करने के ये दश भेद जिनमत में कहे गए हैं ऐसा जानो।
पुनरपि प्रत्याख्यान करने की विधि बताते हैं
गाथार्थ-विनय से, अनुभाषा से, अनुपालन से और परिणाम से प्रत्याख्यान होता है है। यह प्रत्याख्यान चार प्रकार का जानना चाहिए ॥६४१।।
प्राचारवृत्ति-विनय से शुद्ध तथैव अनुभाषा, अनुपालन और परिणाम से शुद्ध प्रत्याख्यान चार भेद रूप हो जाता है । अर्थात् जिस प्रत्याख्यान में विनय के साथ, अनुभाषा के साथ, प्रतिपालना के साथ और परिणाम शुद्धि के साथ आहार आदि का त्याग होता है वह प्रत्याख्यान उन विनय आदि की अपेक्षा से चार प्रकार का हो जाता है।
इनमें से पहले विनय प्रत्याख्यान को कहते हैं
गाथार्थ-कृतिकर्म, औपचारिक विनय, तथा दर्शन ज्ञान और चारित्र में विनय जो इन पांच विध विनय से युक्त है वह विनय शुद्ध प्रत्याख्यान है ॥६४२।।
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