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________________ विषय अमूर्तिक जीव के साथ मूर्तिक कर्म का बन्ध कैसे होता है इसके समाधान के साथ बन्धकारणों का निर्देश संवर- पदार्थ का व्याख्यान निर्जरा-पदार्थ का वर्णन मोक्षपदार्थ का वर्णन नव-पदार्थ के विवेचन का समारोप करते हुए शंका, कांक्षादिक का वर्णन निर्विचिकित्सांग का वर्णन दृष्टि अंग का विस्तार से वर्णन उपगूहनांग का स्वरूप स्थितिकरण, वात्सल्य और प्रभावना अंग के लक्षण नैसर्गिक सम्यक्त्व का स्वरूप कहते हुए दर्शनाचार वे वर्णन का समारोप ज्ञानाचार के वर्णन के सन्दर्भ में ज्ञान का स्वरूप ज्ञानाचार के कालशुद्धि आदि आठ भेद कालाचार का विस्तृत वर्णन कालशुद्धि के पश्चात् द्रव्य, क्षेत्र और भावशुद्धि का विधान सूत्र का लक्षण तथा अ-काल में स्वाध्याय का निषेध जिनग्रन्थों का अ-काल में स्वाध्याय किया जा सकता है उनका उल्लेख विनयशुद्धि और उपधानशुद्धि का स्वरूप बहुमान, अह्निव तथा व्यंजनशुद्धि आदि का वर्णन व समारोप चारित्राचार के कथन की प्रतिज्ञा अहिंसादि महाव्रतों का वर्णन भोजननिवृत्ति का निरूपण करते हुए चारित्राचार वर्णन का समारोप प्रशस्त प्रणिधान और अप्रशस्त प्रणिधान का स्वरूप इन्द्रियप्रणिधान का स्वरूप ईर्या समिति का वर्णन भाषा समिति का वर्णन और उसके अन्तर्गत दस प्रकार के सत्य का वर्णन असत्य, उभय और अनुभयवचनों का स्वरूप ५० / मूलाचार Jain Education International गाथा २३६-२३८ २३६-२४१ २४२-२४६ २४७ २४८-२५१ -२५२-२५५ २५६-२६० २६१ २६२-२६४ २६५-२६६ २६७-२६६ २६६ २७०-२७५ २७६ २७७-२७८ २७६-२८० २८१-२८२ २८३ - २८७ २८८ २८६-२६४ २६५-२६७ २६८ २६६-३०० ३०१-३०६ For Private & Personal Use Only I ३०७-३१२ ३१४-३१७ पृष्ठ २००-२०१ २०१-२०२ २०२-२०६ २०६ २०६-२१० २११-२१५ २१५-२१८ २१५ २१६-२२० २२१-२२२ २२२-२२४ २२४-२२५ २२५-२३१ २३१-२३३ २३४-२३६ २३६-२३७ २३८-२३६ २३१-२४२ _२४२-२४३ २४३-२४६ २४७-२४८ २४६ २४-२५२ २५२-२५५ २५६-२६१ २६१-२६४ www.jainelibrary.org.
SR No.001838
Book TitleMulachar Purvardha
Original Sutra AuthorVattkeracharya
AuthorGyanmati Mataji
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages580
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Ethics, Religion, & Principle
File Size12 MB
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