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विषय
योग्य साधु को आचार्य आश्रय देते हैं और अयोग्य साधु का परिहार करते हैं
आचार्य परिहार योग्य साधु को बिना छेदोपस्थापना संघ में रख लेते हैं वे आचार्य भी छेद के योग्य होते हैं भावशुद्धि और विनयपूर्वक ही मुनि को अध्ययन करना चाहिए । साथ ही द्रव्य क्षेत्र - कालादि का उल्लंघन कर अध्ययन करने का कुफल
परगण में रहनेवाले साधु को प्रत्येक कार्य के प्रारम्भ इच्छाकार पूर्वक ही प्रश्न करना चाहिए। साथ ही परगण में गुरु, बाल, वृद्धादि मुनिओं की वैय वृत करनी चाहिए
मुनि को अपने अपराध की शुद्धि उसी संघ में करनी चाहिए जिस संघ में वह रहता है। आयिकाओं के आने पर मुनि को एकाकी नहीं बैठना चाहिए, इस प्रसंग को लेकर आचार्य तथा आर्यिकाओं को हितकर उपदेश
आर्यिकाओं का गणधर कैसा होना चाहिए आर्यिकाओं की चर्यादि किस प्रकार होना चाहिए
पंचाचाराधिकार
मंगलाचरण और पंचाचार कथन की प्रतिज्ञा
दर्शनाचार का वर्णन
सम्यग्दर्शन का स्वरूप
जीव- पदार्थ का भेदपूर्वक लक्षण
पृथ्वी कायिक के छत्तीस भेद
जलकायिक, तेजसकायिक और वायुकायिक का स्वरूप वनस्पतिकायिक का विस्तृत वर्णन
कायिक का वर्णन
जीवों की कुलकोटि तथा योनि आदि का वर्णन अजीव पदार्थ का वर्णन करते हुए स्कंध, स्कंधदेश,
प्रदेश और परमाणु का स्वरूप
अजीव पदार्थ के अन्तर्गत धर्म, अधर्म, आकाश, कालादि का वर्णन
पुण्य-जीव एवं पाप जीव का विश्लेषण
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गाथा
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विषयानुक्रमणिका / ४६
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