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विषय आभियोग्य कर्म का स्वरूप किल्विष भावना का स्वरूप तथा फल सम्मोहभावना का स्वरूप व उसका फल आसुरीय भावना का स्वरूप व उसका फल बोधि की दुर्लभता किन जीवों को ? बोधि की सुलभता के पात्र जीव अनन्तसंसारी जीव कौन होते हैं ? परीतसंसार कौन होते हैं ? जिनवचन के अश्रद्धान का फल बालमरणों का स्वरूप क्षपक का पण्डितमरण करने का संकल्प कामभोग से तृप्ति नहीं होती परिणाम ही बन्ध का कारण है क्षपक को संज्ञाओं से मोहित न होने का उपदेश सल्लेखना के समय एक वीतराग-मार्ग में उपयोग का उपदेश आराधना के समय एक भी सारभूत इस लोक का ध्यान करने वाला क्षपक कल्याण करनेवाला होता है मृत्युकाल में जिनवचन ही औषध रूप है ऐसा चितवन करना चाहिए मृत्युकाल में शरणभूत क्या है ? इसका निरूपण सल्लेखना का फल सल्लेखना के प्रति क्षपक के हृदय में उत्साह और उसकी हार्दिक प्रसन्नता सल्लेखना-काल में मृत्युभय से मुक्त होने का उपदेश सल्लेखना का पात्र क्षपक की समाधि के लिए जिनेन्द्रचन्द्र से बोधि प्राप्त करने की प्रार्थना
७५-७८ ७६ ७६-८४ ८४-८६
८१-८८ ८६-६१
१२-९३
८६-८८
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संक्षेपप्रत्याख्यानाधिकार
मंगलाचरण पंचपाप के प्रत्याख्यान-त्याग की प्रतिज्ञा
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विषयानुक्रमणिका / ४७
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