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________________ विषय प्रत्याख्यान कायोत्सर्ग केशलोंच का समय अचेलकत्व (नाग्न्यव्रत ) अस्नानव्रत क्षितिशयन व्रत अदन्तधावन व्रत स्थितिभोजन व्रत एकभक्त व्रत मूलगुण-पालन का फल वृहत्प्रत्याख्यानसंस्तरस्तवाधिकार मंगलाचरण व प्रतिज्ञा बाह्याभ्यन्तर उपधि का त्याग सामायिक का स्वरूप और समाधि धारण की प्रतिज्ञा समाधिधारण करनेवाले का क्षमाभाव धारण करना और उसके उपयुक्त चिन्तन सप्त भय, आठ मद, चार संज्ञाएँ, तीन गारव, तेतीस आसादनाएँ और रागद्वेष छोड़ने का संकल्प सात भय एवं आठ मदों के नाम तेतीस आसादनाएँ (चार संज्ञाओं का स्वरूप टिप्पण में) निन्दा, गर्हा और आलोचना करने की प्रतिज्ञा आलोचना की विधि जिसके पास आलोचना की जाए ऐसे आचार्य का स्वरूप आलोचना के अनन्तर क्षमापन की विधि मरण के लीन भेद आराधना के अपात्र मृत्युकाल में सम्यक्त्व की विराधना का फल कन्दर्पादि देव दुर्गतियों का स्वरूप व उनका कारण कन्दर्प देव दुर्गति का स्वरूप और फल ४६ / मूलाचार Jain Education International गाथा २७ २८ २६ ३० ३१ ३२ For Private & Personal Use Only x x x x w ३३ ३४ ३५ ३७-३६ ४०-४१ ४२ ४३-५१ ५२ ५३ ५४ ५५ ५६ ५६-५७ ५८ ५६ ६० ६१ ६२-६३ ૬૪ पृष्ठ ३३-३४ ३५ ३५-३६ ३७-३८ ३८-३६ ४० ४१ ४२-४४ ४४-४७ ४८ ४६-५१ ५१-५२ ५२ ५३-५७ ५७-५८ ५७-५८ ५६ ६१ ६२ ६२ ६३ ६४ ६५ ६५ ६६-६ ६८ www.jainelibrary.org
SR No.001838
Book TitleMulachar Purvardha
Original Sutra AuthorVattkeracharya
AuthorGyanmati Mataji
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages580
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Ethics, Religion, & Principle
File Size12 MB
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