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________________ षडावश्यकाधिकारः] [४२१ दाहोपसमण तण्हाछेदो मलपंकपवहणं चेव । तिहिं कारणेहि जुत्तो तह्मा तं दव्वदो तित्थं ।।५६१।। द्रव्यतीर्थेन दाहस्य संतापस्योपशमनं भवति तृष्णायाश्छेदो विनाशो भवति स्तोककालं पंकस्य च प्रवहणं शोधनमेव भवति न धर्मादिको गुणस्तस्मात्त्रिभिः कारणयुक्तं द्रव्यतीर्थ भवतीति ॥५६॥ भावतीर्थस्वरूपमाह दसणणाणचरित्ते णिज्जुत्ता जिणवरा दु सव्वेवि। तिहि कारणेहिं जुत्ता तह्मा ते भावदो तित्थं ॥५६२॥ दर्शनज्ञानचारित्रैर्युक्ताः संयुक्ता जिनवराः सर्वेऽपि ते तीर्थं भवंति तस्मात्त्रिभिः कारणैरपि भावतस्तीर्थमिति भावोद्योतेन लोकोद्योतकरा भावतीर्थकर्तृत्वेन धर्मतीर्थकरा इति । अथवा दर्शनज्ञानचारित्राणि जिनवरैः सर्वैरपि निर्यक्तानि सेवितानि तस्मातानि भावतस्तीर्थमिति ॥५६२।। जिनवरा अर्हन्निति पदं व्याख्यातुकामः प्राह जिदकोहमाणमाया जिदलोहा तेण ते जिणा होति । हंता अरिं च जम्मं अरहंता तेण 'वुच्चंति ॥५६३॥ गाथार्थ-दाह को उपशम करना, तृष्णा का नाश करना और मल कीचड़ को धो डालना, इन तीन कारणों से जो युक्त है, वह द्रव्य से तीर्थ है ॥५६१।। आचारवृत्ति-द्रव्यतीर्थ से (गंगा पुष्कर आदि से) संताप का उपशमन होता है, प्यास का विनाश होता है और कुछ काल तक ही मल का शोधन हो जाता है, किन्तु उससे धर्म आदि गुण नहीं होते हैं । इसलिए इन तीन कारणों से सहित होने से उसे द्रव्य तीर्थ कहते हैं। भावतीर्थ को कहते हैं गाथार्य-सभी जिनेश्वर दर्शन, ज्ञान और चारित्र से युक्त हैं। इन तीन कारणों से युक्त हैं इसलिए वे भाव से तीर्थ हैं ॥५६२।। आचारवत्ति-दर्शन, ज्ञान, चारित्र से संयुक्त होने से सभी तीर्थकर भावतीर्थ कहलाते हैं। इस प्रकार से ये तीर्थंकर भावउद्योत से लोक को प्रकाशित करनेवाले हैं और भावतीर्थ के कर्ता होने से 'धर्मतीर्थकर' कहलाते हैं। अथवा सभी जिनवरों ने इस रत्नत्रय का सेवन किया है इसलिए वह भी भावतीर्थ कहलाता है। जिनवर और अर्हन् इन पदों का अर्थ कहते हैं गाथार्थ--क्रोध मान माया और लोभ को जीत चुके हैं इसलिए वे 'जिन' होते हैं। शत्रुओं का और जन्म का हनन करनेवाले हैं अतः वे अहंत कहलाते हैं ॥५६३॥ १ क वुच्चदि य । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001838
Book TitleMulachar Purvardha
Original Sutra AuthorVattkeracharya
AuthorGyanmati Mataji
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages580
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Ethics, Religion, & Principle
File Size12 MB
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