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________________ पिण्डशुद्धि-अधिकारः] पिहितदोषप्राह सच्चित्तण व पिहिद अथवा प्रचित्तगुरुगपिहिदं चा। तं छंडिय जं देयं पिहिदं तं होदि बोधव्वो ॥४६६॥ सचित्तेन पिहितमप्रासुकेन पिहित । अथवाऽचित्तगुरुकपिहितं वा प्रासुकेण (न) गुरुकेण यद्वावृतं : तत्त्यक्त्वा यद्देयमाहारादिकं यदि गृह्यते पिहितं नाम दोषं भवति बोद्धव्यं ज्ञातव्यमिति ॥४६६।। संव्यवहारदोषमाह संववहरणं किच्चा पदादुमिदि चेल भायणादीणं। असमिक्खय जं देयं संववहरणो हवदि दोसो॥४६७॥ संव्यवहरणं संझटिति व्यवहारं कृत्वा, प्रदातुमिति चेलभाजनादीनां संभ्रमेणाहरणं वा कृत्वा, प्रकर्षेण दाननिमित्तं वसुभाजनादीनां झटिति संव्यवहरणं कृत्वाऽसमीक्ष्य यद्देयं पानभोजनादिकं तद्यदि संगृह्यते संव्यवहरणं दोषो भवत्येष इति ॥४६७।। दायकदोषमाह सूदी सुडी रोगी मदयणपुंसय पिसायणग्गो य। उच्चारपडिदवंतरुहिरवेसी समणी अंगमक्खीया ॥४६८॥ पिहित दोष को कहते हैं गाथार्थ-जो सचित्त वस्तु से ढका हुआ है अथवा जो अचित्त भारी वस्तु से ढका हुआ है उसे हटाकर जो भोजन देना है वह पिहित है, ऐसा जानना चाहिए ॥४६६।। प्राचारवृत्ति-अप्रासुक वस्तु से ढका हुआ या प्रासुक किन्तु वज़नदार से ढका हुआ है, उसे खोलकर जो आहार आदि दिया जाता है और यदि मुनि उसे लेते हैं तो उन्हें वह पिहित नाम का दोष होता है। सव्यवहार दोष को कहते हैं गाथार्थ-यदि देने के लिए बर्तन आदि को खींचकर बिना देखे दे देवे तो संव्यवहरण दोष होता है ।।४६७॥ प्राचारवृत्ति-दान के निमित्त वस्त्र या वर्तन आदि को जल्दी से खींचकर बिना देखे जो भोजन आदि मुनि को दिया जाता है और यदि वे वह भोजन-पान आदि ग्रहण कर लेते हैं तो उनके लिए वह संव्यवहरण दोष होता है। दायक दोष को कहते हैं गाथार्थ-धाय, मद्यपायी, रोगी, मृतक के सूतक सहित, नपुंसक, पिशाचग्रस्त, नग्न, मलमूत्र करके आये हुए, मूर्छित, वमन करके आये हुए, रुधिर सहित, वेश्या, श्रमणिका, तैल ' मालिश करनेवालो, अतिबाला, अतिवृद्धा, खाती हुई, गर्भिणी, अंधी, किसी के आड़ में खड़ी १क साहरणो सोह। २ क "त्तं भा। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001838
Book TitleMulachar Purvardha
Original Sutra AuthorVattkeracharya
AuthorGyanmati Mataji
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages580
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Ethics, Religion, & Principle
File Size12 MB
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