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________________ ३५०] मज्जण मंडणधादी खेल्लावणखोरभ्रंबधादी य । पंच विधधादिकम्मेणुप्पादो धादिदोसो दु ॥ ४४७॥ धापयति दधातीति वा धात्री । मार्जनधात्री वालं स्नपयति या सा मार्जनधात्री । मण्डयति विभूषयति तिलकादिभिर्या सा मण्डनधात्री मण्डननिमित्त माता । वालं क्रीडयति रमयति क्रीडनधात्री क्रीडानिमित्तं माता । क्षीरं स्तैन्यं धारयति दधाति या सा क्षीरधात्री स्तनपायिनी । अम्बधात्री जननी, स्वापयति या सायम्बधात्री । एतासां पंचविधानां धात्रीणां क्रियया कर्मणा य आहारादिरुत्पद्यते स धात्रीनामोत्पादनदोषः । बालं स्नापयानेन प्रकारेण बालः स्नाप्यते येन सुखी नीरोगी च भवतीयेत्वं मार्जननिमित्तं वा कर्म गृहस्थायोपदिशति, तेन च कर्मणा गृहस्थो दानाय प्रवर्तते तद्दानं यदि गृह्णाति साधुस्तस्य धात्रीनामोत्पादनदोषः । तथा बालं स्वयं मण्डयति मण्डननिमित्तं वा कर्मोपदिशति यस्मै दात्रे स तेन भक्तः सन् दानाय प्रवर्तते तद्दानं यदि गृह्णाति साधुस्तस्य मण्डनधात्रीनामोत्पादनदोषः । तथा बाल स्वयं क्रीडयति क्रीडानिमित्त च क्रियामुपदिशति यस्मै दात्रे स दाता दानाय प्रवर्तते तद्दानं यदि गृह्णाति साधुस्तस्य क्रीडनधात्री नामोत्पादनदोषः । तथा येन क्षीरं भवति येन च विधानेन बालाय क्षीरं दीयते तदुपदिशति यस्मै दात्र स भक्तः सन् दाता [मूलाचारे गाथार्थ - मार्जनधात्री, मण्डनधात्री, क्रीडनधात्री, क्षीरधात्री और अम्बधात्री इन पाँच प्रकार के धात्री कर्म द्वारा उत्पन्न कराया गया आहार धात्री दोष है ||४४७॥ आचारवृत्ति--जो दूध पिलाती है अथवा पालन-पोषण करती है वह धात्री कहलाती है । जो बालक को स्नान कराती है वह मार्जनधात्री है। जो तिलक आदि लगाकर बालक को भूषित करती है वह मण्डन के निमित्त माता है अतः उसे मण्डनधात्री कहते हैं । जो बालक को क्रीडा कराती है, रमाती है वह क्रीडन निमित्त माता है अतः उसे क्रीडनधात्री कहते हैं । जो दूध पिलाती है वह स्तनपायिनी क्षीरधात्री है । जननो - जन्म देनेवाली को अम्बधात्री कहते हैं अथवा जो सुलाती है वह भी अम्बधात्री कहलाती है । जो साधु इन पाँच प्रकार की धात्री की क्रिया करके आहार आदि उत्पन्न कराते हैं उनको धात्री नाम का उत्पादन दोष लगता है । अर्थात् बालक को इस प्रकार से नहलाओ, ऐसे स्नान कराने से यह बालक सुखी और निरोग रहेगा, इत्यादि प्रकार से बालकों के नहलाने सम्बन्धी कार्य को जो गृहस्थ के लिए बताते हैं और उस कार्य से गृहस्थ दान के लिए प्रवृत्ति करता है, पुनः साधु यदि उस आहार को ले लेता है तब उसके यह मार्जनधात्री नामक उत्पादन दोष होता है । Jain Education International उसी प्रकार से जो बालक को स्वयं विभूषित करता है अथवा विभूषित करने के तरोके गृहस्थ को बतलाता है पुनः वह दाता मुनि का भक्त होकर यदि उन्हें आहार देता है और मुनि यदि ले लेता है तो उनके यह मण्डनधात्री नाम का उत्पादन दोष होता है । उसी प्रकार से जो स्वयं बालक को क्रीडा कराता है या क्रीड़ा निमित्त जिसके उपदेश देता है वह दाता यदि दान के लिए प्रवृत्त होता है और मुनि उससे आहार ले लेता है तब उन मुनि के क्रीडनधात्री नामक उत्पादन दोष होता है । जिस प्रकार से स्तन में दूध होता है और जिस विधान से बालक को दूध पिलाया जाता है उस प्रकार का उपदेश जिसको दिया जाय, वह १ क धात्रीकर्मणा क्रियया च । For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001838
Book TitleMulachar Purvardha
Original Sutra AuthorVattkeracharya
AuthorGyanmati Mataji
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages580
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Ethics, Religion, & Principle
File Size12 MB
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