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[मूलाचारे ददात्येतद्दिवसं परावृत्य जातं प्राभृतं तथा चैत्रशुक्लपक्षे देयं यत्तच्चत्रांधकारपक्षे ददाति । अन्धकारपक्षे वा देयं शुक्लपक्षे ददाति पक्षपरावृत्तिजातं प्राभृतं । तथा चैत्रमासे देयं फाल्गुने ददाति फाल्गुने देयं वा चैत्रे ददाति तन्मास परिवृत्तिजातं प्राभृतं । तथा परुत्तने वर्षे देयं यत्तदधुनातने वर्षे ददाति । अधुनातने वर्षे यदिष्टं परुत्तने ददाति तद्वर्षपरावृत्तिजातं प्राभृतं । तथा सूक्ष्मं च प्रावर्तितं द्विविधं पूर्वाह्णवेलायामपरावेलायां मध्याह्नवेलायामिति । अपराह्णवेलायां दातव्यमिति स्थितं प्रकरणं मंगलं संयतागमनादिकारणेनापकृष्य पूर्वाह्नवेलायां ददाति पूर्वाह्नवेलायां दातव्यमित्युत्कृष्यापरावेलायां ददाति तथा मध्याह्न दातव्यमिति स्थित पूर्वाह ऽपराले वा ददाति एनं प्रावर्तितदोषं कालहानिवृद्धिपरिवृत्त्या वादरसूक्ष्मभेदभिन्नं जानीहि क्लेशबहुवि'घातारंभदोषदर्शनादिति ॥४३३॥ - प्रादुष्कारदोषमाह
पादुक्कारो दुविहो संकमण पयासणा य बोधब्वो।
भायणभोयणदीणं' मंडवविरलादियं कमसो॥४३४॥ प्रादुष्कारो द्विविधो बोधव्यो ज्ञातव्यः । भाजनभोजनादीनां संक्रमणमेकः । तथा भाजनभोजनादीनां
ऐसा संकल्प किया था पुनः उसका उत्कर्षण करके-बढ़ा करके शुक्ला अष्टमी को देना आदि सोयह दिवस का परिवर्तन हआ। वैसे ही चैत्र के शक्ल पक्ष में देना था किन्तु चैत्र के कृष्णपक्ष में जो देता है अथवा कृष्ण पक्ष में देने योग्य को शुक्ल पक्ष में देता है सो यह पक्ष परिवर्तन दोष है। तथा चैत्र मास में देना था सो फाल्गुन में दे देता है अथवा जो फाल्गुन में देना था उसे चैत्र में देता है सो यह मास परिवर्तन नाम का दोष है। तथा गतवर्ष में देना था सो वर्तमान वर्ष में देता है और वर्तमान वर्ष में जो देना इष्ट था सो पूर्व के वर्ष में दे दिया जाना सो यह वर्ष परिवर्तन नाम का दोष है।
- उसी प्रकार से सूक्ष्मप्राभूत भी दो प्रकार का है। अपराह्न वेला में देने योग्य ऐसा कोई मंगल प्रकरण था किन्तु संयत के आगमन आदि के कारण से उस काल का अपकर्षण करके पूर्वाह्न वेला में आहार दे देना, वैसे ही मध्याह्न में देना था किन्तु पूर्वाह्न अथवा अपराह्न में दे देना सो यह सूक्ष्मप्राभृत दोष काल की हानि-वृद्धि की अपेक्षा दो प्रकार का हो जाता है।
_इसे प्रावर्तित दोष भी कहते हैं। चूंकि इसमें काल की हानि और वृद्धि से परिवर्तन किया जाता है। इस तरह आहार देने में दातार को क्लेश, बहुविधात और बहुत आरम्भ आदि दोष देखे जाते हैं अतः यह दोष है।
प्रादुष्कार दोष को कहते हैं
गाथार्थ-संक्रमण और प्रकाशन ऐसे प्रादुष्कार दो प्रकार का जानना चाहिए, जो कि भाजन, भोजन आदि का और मण्डप का उद्योतन करना आदि है ।।४३४॥
प्राचारवृत्ति-प्रादुष्कार के दो भेद जानना चाहिए। बर्तन और भोजन आदि का संक्रमण करना यह एक भेद है, तथा बर्तन व भोजन आदि का प्रकाशन करना यह दूसरा भेद है। किसी भी वर्तन या भोजन आदि को एक स्थान से अन्य स्थान पर ले जाना यह तो १क विधाता। २ क णमादी में।
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