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________________ ६. अथ पिण्डशुद्धि - अधिकारः पिंड शुद्धयाख्यं षष्ठमाचारं विधातुकामस्तावन्नमस्कारमाहतिरदणपुरुगुणसहिदे अरहंते विदिदसयलसम्भावे । पण मय सिरिसा वोच्छं समासदो पिण्डसुद्धी दु ॥४२० ॥ त्रिरत्नानि सम्यग्दर्शनज्ञानचारित्राणि तानि च तानि पुरुगुणाश्च ते महागुणाश्च ते त्रिरत्नपुरुगुणाः । अथवा त्रिरत्नानि सम्यक्त्वादीनि पुरुगुणा अनन्तसुखादयस्तैः सहितास्तान् । अरहंते अर्हतः सर्वज्ञात् विदितसकलसद्भावान् विदितो विज्ञातः सकलः समस्तः सद्भावः स्वरूपं यैस्तान् परिज्ञातसर्वपदार्थ स्वरूपान् प्रणम्य शिरसा वक्ष्ये समासतः पिण्डशुद्धिमाहारशुद्धिमिति ॥ ४२० || यथाप्रतिज्ञ निर्वहन्नाह उग्गम उप्पादण एसणं च संजोजणं पमाणं च । इंगल धूम कारण अट्ठविहा पिण्डसुद्धी दु ॥ ४२१ ॥ उद्गच्छत्युत्पद्यते यैरभिप्रायैर्दातृपात्रगतैराहारादिस्ते उद्गमोत्पादनदोषाः आहारार्थानुष्ठानविशेषाः । fisशुद्धि नामक छठे आचार को कहने के इच्छुक आचार्य सबसे प्रथम नमस्कार करते हैं गाथार्थ - तीन रत्नरूपी श्रेष्ठ गुणों से सहित सकल पदार्थों के सद्भाव को जानने वाले अर्हन्त परमेष्ठी को शिर झुकाकर नमस्कार करके संक्षेप से पिंडशुद्धि को कहूँगा । ॥४२० ॥ श्राचारवृत्ति - सम्यग्दर्शन, ज्ञान और चारित्र ये तीन रत्न हैं और ये ही पुरुगुण अर्थात् महागुण कहलाते हैं । अथवा सम्यक्त्व आदि तीन रत्न हैं, और अनन्त सुख आदि पुरुमहान् गुण हैं । जो इन तीन रत्न और पुरुगुण से सहित हैं, जिन्होंने समस्त पदार्थों के सद्भावस्वरूप को जान लिया है, ऐसे अर्हन्त परमेष्ठी को शिर झुकाकर प्रणाम करके मैं संक्षेप से पिंडशुद्धि - आहार शुद्धि अधिकार को कहूँगा । Jain Education International अपनी की हुई प्रतिज्ञा का निर्वाह करते हुए आचार्य कहते हैं- गाथार्थ - उद्गम, उत्पादन, एषणा, संयोजना, प्रमाण, अंगार, धूम और कारण इस तरह पिंडशुद्धि आठ प्रकार की है ।।४२१ ।। श्राचारवृत्ति - दाता में होनेवाले जिन अभिप्रायों से आहार आदि उद्गच्छति For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001838
Book TitleMulachar Purvardha
Original Sutra AuthorVattkeracharya
AuthorGyanmati Mataji
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages580
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Ethics, Religion, & Principle
File Size12 MB
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