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________________ यही क्रम मूलाचार में है- अणण अवमोदरियं रसपरिचाओ य वृत्तिपरिसंखा । कायम विपरितावो विवित्तस्यणासणं छठें ॥४६॥ अ. ५ पायच्छित्तं विणओ बेज्जावच्च तहेव सज्झायं । झाणं विउस्सग्गो अभंतरओ तबो एसो ॥ १६३॥ इससे यह ध्वनित होता है कि श्री गौतमस्वामी ने बाह्य तपों में कायोत्सर्ग को पाँचवाँ और विविक्तशयनासन को छठा लिया है । तथा अभ्यन्तर तपों में भी ध्यान को पाँचवाँ और व्युत्सर्ग को छठा कहा है ।. इसी क्रम को लेकर मूलाचार में भी श्री कुन्दकुन्ददेव ने गौतमस्वामा के कथनानुसार ही क्रम रखा है । बाद में श्री उमास्वामी से तपों के क्रम में अन्तर आ गया है । प्रतिक्रमण के कुछ अन्य पाठ भी ज्यों के त्यों श्री कुन्दकुन्द की रचना में पाये जाते हैंfrrific frrifखद णिव्विदिगिंच्छा अमूढदिट्ठि य । उवण ठिदिकरणं वच्छल्ल पहावणा य ते अट्ठ' ।। यह गाथा प्रतिक्रमण में है । यही की यही मूलाचार में है और चारित्रपाहुड में भी है । और भी कई गाथायें हैं, जो 'प्रतिक्रमण' में हैं वे ही ज्यों की त्यों मूलाचार में भी हैं" खम्मामि सव्वजीवाणं सव्वे जीवा खमंतु मे । मित्तमे सव्वभूदेसु बेरं मज्झं ण केण वि ||४३|| मुलाचार रायबंध पदोसं च हरिसं दीणभावयं । उस्सुगत्तं भयं सोगं रदिमरदि च वोस्सरे ॥४४॥ मिच्छत्त वेदरागा तहेव हस्सादिया य छद्दोसा | चत्तारि तह कसाया चउदस अब्भंतरं गंथा' ।। २१०।। मू. अ. ७ इन सभी प्रमाणों से यह बात सिद्ध हो जाती है कि यह मूलाचार श्री कुन्दकुन्ददेव की ही रचना है । Jain Education International यह प्रश्न होता है कि तब यह 'वट्टकेर आचार्य' का नाम क्यों आया है । तब ऐसा कहना शक्य है कि कुन्दकुन्ददेव का ही अपरनाम वट्टकेर माना जा सकता है । क्योंकि श्री वसुनन्दि आचार्य ने प्रारम्भ में तो श्री मद्वट्टकेराचार्यः 'श्री वट्टकेराचार्य' नाम लिया है । तथा अन्त में " इति मूलाचारविवृतौ द्वादशोऽध्यायः । कुन्दकुन्दाचार्यप्रणीतमूलाचा राख्यविवृतिः । कृतिरियं वसुनन्दिनः श्रवणस्य ।" ऐसा कहा है । इस उद्धरण से तो संदेह को अवकाश ही नहीं मिलता है । १. प्रतिक्रमण पाक्षिक। मूलाचार अ. ५, गाथा ४, चारित्रपाहुड गाथा ७ । २. देवसिक प्रतिक्रमण । ३. पाक्षिक प्रतिक्रमण | ३४ / मूलाचार For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001838
Book TitleMulachar Purvardha
Original Sutra AuthorVattkeracharya
AuthorGyanmati Mataji
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages580
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Ethics, Religion, & Principle
File Size12 MB
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