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________________ २८२) [मूलाचारे एदाहि भावणाहि दु तम्हा भावेहि अप्पमत्तो त। प्रच्छिद्दाणि अखंडाणि ते भविस्संति हु वदाणि ॥३४३॥ तरमादेताभिर्भावनाभिः भावयात्मानमप्रमत्तः स त्वं । ततोऽच्छिद्राण्यखण्डानि सम्पूर्णानि भविष्यन्ति हि स्फुटं ते तव व्रतानीति ॥३४३।। चारित्राचारमुपसंहरस्तप आचारं च सूचयन्नाह एसो चरणाचारो पंचविधो वण्णिदो समासेण। एत्तो य तवाचारं समासदो वण्णयिस्सामि ॥३४४॥ एष चरणाचारः पंचविधोऽष्टविधश्च वणितो मया समासेन इत ऊवं तप आचारं समासतो वर्णयिष्यामीति ॥३४४॥ दुविहा य तवाचारो बाहिर अब्भतरो मुणेयव्वो। एक्कक्को विय छद्धा जधाकमं तं परवेमो॥३४५॥ द्विप्रकारस्तप आचारस्तपोऽनुष्ठानं। बाह्यो बाह्यजनप्रकटः। अभ्यन्तरोऽभ्यन्तरजनप्रकटः । गाथार्थ-इसलिए तुम अप्रमादी होकर इन भावनाओं से आत्मा को भावो। निश्चित रूप से तुम्हारे व्रत छिद्र रहित और अखण्ड परिपूर्ण हो जावेंगे। ॥३४३॥ आचारवृत्ति-इसलिए तुम प्रमाद छोड़कर अप्रमत्त होते हुए इन भावनाओं के द्वारा अपनी आत्मा को भावो । इससे तुम्हारे व्रत निश्चित रूप से छिद्र रहित अर्थात् दोषरहित, अखण्ड-परिपूर्ण हो जावेंगे, ऐसा समझो। चारित्राचार का उपसंहार करते हुए और तप-आचार को सूचित करते हुए आचार्य कहते हैं भावार्थ-संक्षेप से यह पाँच प्रकार का चारित्राचर मैंने कहा है। इससे आगे संक्षेप से तप आचार को कहूँगा। ॥३४४।। प्राचारवृत्ति-यह पाँच महाव्रत रूप पाँच प्रकार का और अष्ट प्रवचनमातका रूप आठ प्रकार का चारित्राचार मैंने संक्षेप से कहा है. इसके बाद अब मैं तप-आचार को संक्ष कहूँगा। __ भावार्थ-चारित्राचार के मुख्यतया पाँच ही भेद हैं जो कि महाव्रतरूप हैं। अतः गाथा में पंचविधः शब्द का उल्लेख है। किन्तु जो आठ प्रवचनमातृका हैं वे तो उन व्रतों की रक्षा के लिए ही विवक्षित हैं । अथवा चारित्राचार के अन्यत्र ग्रन्थों में तेरह भेद भी माने है । अब तप आचार को कहते हैं गाथार्थ-बाह्य और अभ्यन्तर के भेद से तप-आचार दो प्रकार का जानना चाहिए। उसमें एक-एक भी छह प्रकार का है । उनको मैं कम से कहूँगा। ॥३४॥ प्राचारवृत्ति-तप के अनुष्ठान का नाम तप-आचार है। उसके दो भेद हैं-बाह्य और Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org.
SR No.001838
Book TitleMulachar Purvardha
Original Sutra AuthorVattkeracharya
AuthorGyanmati Mataji
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages580
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Ethics, Religion, & Principle
File Size12 MB
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