________________
श्री कुन्दकुन्दाचार्य और बट्टकेराचार्य
श्री वट्टकेर आचार्य और कुन्दकुन्दाचार्य ये दोनों इस मूलाचार के रचयिता हैं या फिर दोनों में से कोई एक हैं, या ये दोनों एक ही आचार्य हैं - इस विषय पर यहाँ कुछ विचार किया जा रहा है ।
श्री कुन्दकुन्दाचार्य के निर्विवाद सिद्ध समयसार, प्रवचनसार, नियमसार, पंचास्तिकाय और अष्टपाहुड ग्रन्थ बहुत ही प्रसिद्ध हैं । समयसार में एक गाथा आयी है"अरसमरूबमगंधमव्वत्तं चेदनाणुणमसद्दं ।
जाण अलिंगग्गहणं जीवमणिद्दिसंठाणं ॥ ४९ ॥
यही गाथा प्रवचनसार में क्रमांक १८ पर आयी है | नियमसार में क्रमांक ४६ पर है | पंचास्तिकाय में क्रमांक १२७ पर है, और भावपाहुड में यह ६४वीं गाथा है ।
इसी तरह समयसार की एक गाथा है
यही गाथा नियमसार में १०० नम्बर पर है और भावसंग्रह में ५८वें नम्बर पर है । इसी प्रकार से ऐसी अनेक गाथाएं हैं जो कि इनके एक ग्रन्थ में होकर पुन: दूसरे ग्रन्थ में भी मिलती हैं ।
इसी तरह
"आदा हु मज्झणाणे आदा मे दंसणे चरिते य । आदा पच्चक्खाणे आदा मे संवरे जोगे ॥ २७७ ॥
यह गाथा समयसार में १५वीं है । मूलाचार में भी यह गाथा दर्शनाचार का वर्णन करते हुए पांचवें अध्याय में छठे क्रमांक पर आयी है । "आदा खु मज्झ गाणे" यह गाथा भी मूलाचार में आयी है ।
३० / मूलाचार
Jain Education International
भूयत्थेणाभिगदा जीवाजीवा य पुण्णपावं च । आसवसंवरणिज्जरबंधो मोक्खो य सम्मत्तं ॥ १५॥
।
रागो वंधइ कम्मं मुच्चइ जीवो विरागसंपण्णो । एसो जिणोवदेसो समासदो बंधमोक्खाणं ॥ ५० ॥ यह गाथा मूलाचार के अध्याय ५ में है है । अन्तिम चरण में " तम्हा कम्मेसु मा रज्ज" कुन्दकुन्ददेव की रचना है । यह ग्रन्थ मुनियों के करता है। इसमें व्यवहार चारित्र अति संक्षिप्त है- गौण है, निश्चयचारित्र ही विस्तार से है, वही मुख्य है । इस ग्रन्थ में अनेक गाथाएँ ऐसी हैं जो कि मूलाचार में ज्यों की त्यों पायी जाती हैं । यथा नियमसार में
यही गाथा किंचित् बदलकर समयसार में ऐसा पाठ बदला है | नियमसार ग्रन्थ श्री व्यवहार और निश्चय चारित्र का वर्णन
१. जं किचि मे दुच्चरियं सव्वं तिविहेग वोस्सरे । सामाइयं च तिविहं करेमि सव्यं णिरायारं ॥ १०२ ॥
For Private & Personal Use Only
मू. गा. क्र.
( ३९ )
www.jainelibrary.org