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________________ २५०] [मूलाचारे शब्दरसरूपगन्धस्पर्शष मनोहरेषु शोभनेषु, इतरेष्वशोभनेषु, यद्रागद्वेषयोर्गमनं प्रापणं तत्पंचप्रकारमिन्द्रियप्रणिधानं भवति। स्त्रीपुरुषादिप्रवृत्तेषुषड्जर्षभ-गान्धार-मध्यम-पंचम-धवत-निषादभेदभिन्नेष आरोह्यवरोहिस्थायिसंचारिचतुर्वर्णयुक्तेषु षडलंकारद्विविधकाकुभिन्नेषु मूर्च्छनास्त्यानादिप्रयुक्तेषु सुस्वरेषु यद्रागप्रापणं, तथा कोकिलमयूरभ्रमरादिशब्देषु वीणारावणहस्तवंशादिशब्देषु यद्रागकरणं, तथोष्ट्रखरकरभादिप्रयुक्तेषु दुःस्वरेषु उरःकण्ठशिरस्त्रिस्थानभेदभिन्नेष्वनिष्टेषु यद्वेषकरणं । तथा तिक्तकटुकषायाम्लमधुरभेदभिन्नेष सुप्रयुक्तेषु मनोहरेष्वमनोहरेषु तीव्रतीव्रतरतीव्रतम-मन्दमन्दतरमन्दतमेषु गुडखंडदधिघृतपय:पानादिगतेषु निवकांजीरविषखल' यवसकुष्ठादिगतेषु च रसेषु यद्रागद्वेषयोः करणं । तथा स्रीपुरुषादिगतेषु गौरश्यामादिवर्णेषु रूपेषु हावभावहेलांगजभावप्रयुक्तेषु लीलाविलासविच्छित्तिविभ्रमकिलकिंचित-मोट्टायितकूट्टिमितविव्वोकललितविहृतैर्दशभिःस्वाभाविकैर्भावैर्युक्तेषु शोभाकान्तिमाधुर्यधैर्यप्रागल्भ्यो दायरयत्नजैः प्रयोजितेषु द्वात्रिंशत्करणयुक्तेषुकटाक्षनिरीक्षणपरेषुनृत्तगीतहास्यादिमनोहरेषुरूपेषुतद्विपरीतेष्वमनोहरेषुरागद्वेषप्रयुक्तेषु[क्तं] आचारवृत्ति-शब्द, रस, रूप, गंध और स्पर्श ये पाँचों इन्द्रियों के विषय मनोहर और अमनोहर ऐसे दो प्रकार के होते हैं । इन दोनों प्रकार के विषयों में जो राग-द्वेष का होना है वह पाँच प्रकार का इन्द्रिय प्रणिधान है। स्त्री-पुरुष आदि के द्वारा प्रयुक्त किये गये षड्ज, ऋषभ, गांधार, मध्यम, पंचम, धैवत और निषाद ये सात स्वर हैं । ये आरोही, अवरोही, स्थायी और संचारी ऐसे चार प्रकार के वर्णों से युक्त हैं। छह प्रकार के अलंकार और दो प्रकार की काकु ध्वनि से भेदरूप हैं। तथा मर्छना, स्त्यान आदि के द्वारा जो प्रयुक्त किये जाते हैं ये सुस्वर हैं। इनमें राग करना त कोयल, मयूर, भ्रमर आदि के शब्द और वीणा, रावण के हस्त की वीणा एवं बाँसुरी आदि से उत्पन्न हुए शब्दों में राग करना; तथा ऊंट, गधा, करभ आदि के द्वारा प्रयुक्त दुःस्वरों में जो हृदय, कण्ठ और मस्तक इन तीनों स्थानों से उत्पन्न होने के भेदों से सहित हैं और अनिष्टअमनोहर हैं इनसे द्वेष करना यह श्रोत्रेन्द्रिय प्रणिधान है। तिक्त, कट, कषायला, अम्ल और मधुर ये पाँच प्रकार के रस हैं । ये मनोहर और अमनोहर होते हैं। तथा तीव्र, तीव्रतर, तीव्रतम, मन्द, मन्दतर और मन्दतम ऐसे भेदवाले गुड़, खांड दही, घी, दूध, आदि पीने वाले पदार्थ मनोहर हैं एवं नीम, कांजीर, विष, खल, यवस, कुष्ठ, आदि पदार्थ अमनोहर हैं । इन इष्ट या अनिष्ट रसों में जो राग-द्वेष करना है वह रसनेन्द्रिय-प्रणिधान है। स्त्री-पुरुष आदि में होनेवाले गौर, श्याम आदि बर्ण रूप कहलाते हैं। उन रूपों में स्वाभाविक भाव, अंगजभाव आदि उत्पन्न होने से वे मनोहर लगते हैं। यथा-हाव, भाव और हेला ये अंगजभाव हैं । २लीला, विलास, विच्छित्ति, विश्नम, किलकिंचित, १ क यमक्रुण्टा । २ 'लीला बिलासो विच्छित्तिविभ्रमः किलकिञ्चितम् । मोट्टायितं कुट्टमितं विल्लोको ललितं तथा ।। विहृतं चेति मन्तव्या दश स्त्रीणां स्वभावजाः ।' नाटक रत्नकोश । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org.
SR No.001838
Book TitleMulachar Purvardha
Original Sutra AuthorVattkeracharya
AuthorGyanmati Mataji
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages580
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Ethics, Religion, & Principle
File Size12 MB
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