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और चिन्तन से यह निष्कर्ष निकाला है कि मूलाचार एक ही है, इसके कर्ता एक हैं किन्तु टीकाकार दो हैं ।
जो कर्नाटक टीका और उसके कर्ता श्री मेघचन्द्राचार्य हैं वह प्रति मुझे प्रयास करने पर भी देखने को नहीं मिल सकी है। पण्डित जिनदास फडकुले ने जो अपनी प्रस्तावना में उस प्रति के कुछ अंश उद्धत किये हैं, उन्हीं को मैंने उनकी प्रस्तावना से ही लेकर यहाँ उद्धृत कर दिया है। यहाँ यह बात सिद्ध हुई कि -
श्री कुन्दकुन्द कृत मूलाचार में गाथाएँ अधिक हैं । कहीं-कहीं गाथायें आगे पीछे भी हुई हैं, और किन्हीं गाथाओं में कुछ अन्तर भी है । दो टीकाकारों से एक ही कृति में ऐसी बातें अन्य ग्रन्थों में भी देखने को मिलती हैं ।
श्री 'कुन्दकुन्द द्वारा रचित समयसार, प्रवचनसार और पंचास्तिकाय में भी यही बात है । प्रसंगवश देखिए समयसार आदि में दो टीकाकारों से गाथाओं में अन्तर
श्री 'कुन्दकुन्द के समयसार ग्रन्थ की वर्तमान में दो टीकाएँ उपलब्ध हैं । एक श्री अमृतचन्द्र सूरि द्वारा रचित है, दूसरी श्री जयसेनाचार्य ने लिखी है । इन दोनों टीकाकारों ने गाथाओं की संख्या में अन्तर माना है । कहीं-कहीं गाथाओं में पाठभेद भी देखा जाता है । तथा किंचित् कोई-कोई गाथाएँ आगे-पीछे भी हैं । संख्या में श्री अमृतचन्द्र सूरि ने चार सौ पन्द्रह (४१५) गाथाओं की टीका की है। श्री जयसेनाचार्य ने चार सौ उनतालीस (४३६) गाथाएँ मानी हैं । यथा - " इति श्री कुन्दकुन्ददेवाचार्य विरचित- समयसारप्राभृताभिधानग्रन्थस्य सम्बन्धिनी श्रीजयसेनाचार्यकृता दशाधिकारैरे कोनचत्वारिंशदधिकगाथाश्चतुष्टयेन तात्पर्यवृत्तिः समाप्ता ।"
गाथाओं में किंचित् अन्तर भी है । यथा
एवंविहा बहुविहा परमप्पाणं वदंति दुम्मेहा |
परमवाई णिच्छ्यवाईहिं णिद्दिट्ठा ||४३|
श्री जयसेनाचार्य ने तृतीय चरण में अन्तर माना है । यथातेण तु परप्पवादी णिच्छयवादीहिं णिछिट्ठा ॥
अधिक गाथाओं के उदाहरण देखिए
अज्झवसाणणिमित्तं ''यह गाथा क्रमांक २६७ पर अमृतचन्द्रसूरि ने रखी है । इसे श्री जयसेनाचार्य ने क्रमांक २८० पर रखी है। इसके आगे पाँच गाथाएँ
अधिक ली हैं ।
वे हैं
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कायेण दुखमय सत्ते एवं तु जं मदि कुणसि ।
सव्वावि एस मिच्छा दुहिदा कम्मेण जदि सत्ता ॥ २८१ ॥
वाचाए दुक्खवेमिय सत्ते एवं तु जं मदि कुणसि । सव्वावि एस मिच्छा दुहिदा कम्मेण जदि सत्ता ॥२६२॥ मसाए दुक्खवेमिय सत्ते एवं तु जं मदिं कुणसि । सव्वावि एस मिच्छा दुहिदा कम्मेण जदि सत्ता ॥ २८३ ॥
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आद्य उपोद्घात / २७
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