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________________ पुनरपि गाथा आगे है जो पुढविकाइजीवे अइसद्दहदे जिणेहि पण्णत्ते । उवलद्धपुण्णपावस्त तस्सुवट्ठावणा अत्थि ॥११६। इसके बाद भी कर्णाटक टीका की प्रति में 'जो आउकाइगे जीवे' आदि से-'जो तसकाइगे जीवे' पर्यंत पाँच गाथाएँ हैं । किन्तु वसुनन्दि आचार्य ने इस गाथा की टीका में इन पाँच गाथाओं का अर्थ ले लिया है "एवमप्कायिक-तेजःकायिक-वायुकायिक-वनस्पतिकायिक-त्रसकायिकांस्तदाश्रितांश्च य श्रद्दधाति मन्यते अभ्युपगच्छति तस्योपलब्धपूण्यपापस्योपस्थाना विद्यते इति । पुनरपि आगे गाथा है ण सद्दहदि जो एदे जीवे पुढविदं गदे। स गच्छे दिग्धमद्धण लिंगत्यो वि हु दुम्मदि ॥१२०॥ इसके आगे भी श्री मेघचन्द्राचार्य की टीका में अपकायिक आदि सम्बन्धी पाँच गाथाएँ हैं जबकि वसुनन्दि आचार्य ने इनकी टीका में ही सबको ले लिया है। आगे इसी प्रकार से एक गाथा है जदं तु चरमाणस्स दयापेहुस्स भिक्खुणो। णवं ण वज्झदे कम्मं पोराण च विधूयदि ॥१२३॥ मेघचन्द्राचार्य कृत टीका की प्रति में इसके आगे छह गाथाएं और अधिक हैं जदं तु चिट्ठमाणस्स दयापेक्खिस्स भिक्खुणो। णवं ण वज्झदे कम्मं पोराणं च विधूयदि ॥१५२॥ जदं तु आसमाणस्स दयापेक्खिस्स भिक्खुणो। णवं ण वज्झदे कम्मं पोराणं च विधूयदि ॥१५३॥ जदं तु सयमाणस्स दयापेक्खिस्स भिक्खणो। णवं ण वज्झदे कम्मं पोराणं च विधूयदि ॥१५४॥ जदं तु भुजमाणस्स दयापेक्खिस्स भिक्खणो। णवं ण वज्झदे कम्म पोराणं च विधुयदि ।।१५।। जदं तु भासमाणस्स दयापेक्खिस्स भिक्खुणो। णवं ण वज्झदे कम्मं पोराणं च विध्यदि ॥१५६।। दव्वं खेत्तं कालं भावं च पड़च्च तह य संघडणं । चरणम्हि जो पवट्टइ कमेण सो णिरवहो होइ ॥१५७।। १. मूलाचार द्विभाग, पृ. १४८ । २. मूलाचार कुन्दकुन्द कृत, पृ. १८०, १८१ । २४ / मूलाचार Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001838
Book TitleMulachar Purvardha
Original Sutra AuthorVattkeracharya
AuthorGyanmati Mataji
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages580
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Ethics, Religion, & Principle
File Size12 MB
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