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पंचाचाराधिकारा]
[१९३ उपयोगः । ज्ञानं पंचप्रकारमज्ञानत्रयं च साकार उपयोग: चदुदंसणं-चत्वारि दर्शनानि चक्षुरचक्षुरवधिकेवलदर्शनभेदेन । अणगारो-अनाकारोऽविकल्पको गुणीभूतविशेषसामान्य ग्रहणप्रधानः, चत्वारिदर्शनान्यनाकार उपयोगः । सव्वे-सर्वे। तल्लक्खणा-तो ज्ञानदर्शनोपयोगी लक्षणं येषां ते तल्लक्षणाः ज्ञानदर्शनोपयोगलक्षणाः सर्वे जीवा ज्ञातव्या इति ॥२२॥
जीवभेदोपसंहारादजीवभेदसूचनाय गाथा
एवं जीवविभागा बहु भेदा वणिया समासेण ।
एवंविधभावरहियमजीवदव्वेत्ति 'विण्णेयं ॥२२६॥
एवं-व्याख्यातप्रकारेण । जीवविभागा-जीवविभागाः। बहुभेदा-बहुप्रकाराः । वण्णिदावणिताः । समासेण-संक्षेपेण । एवंविधभावरहियं-व्याख्यातस्वरूपविपरीतमजीवद्रव्यमिति विज्ञेयम् ॥२२६।।
अजीवभेदप्रतिपादनायाह
अज्जीवा विय दुविहा रूवारूवा य रूविणो चदुधा। खंधा य खंधदेसो खंधपदेसो अणू य तहा ॥२३०॥
यह ज्ञान साकार है । अर्थात् आकार के साथ, व्यक्तिरूप से पदार्थ को जानता है इसलिए इसे साकार या सविकल्प कहते हैं । अर्थात् सामान्य को गौण करके विशेष को ग्रहण करने में कुशल जो उपयोग है वह साकारोपयोग है । पाँच प्रकार का ज्ञान और तीन प्रकार का अज्ञान ये आठ प्रकार का साकारोपयोग होता है।
__ चक्षुदर्शन, अचक्षुदर्शन, अवधिदर्शन और केवलदर्शन के भेद से दर्शनोपयोग चार प्रकार का है। यह अनाकार या अविकल्पक है। जो विशेष को गौण करके सामान्य को ग्रहण करने में प्रधान है वह अनाकारोपयोग है । ये चारों दर्शन अनाकारोपयोग कहलाते हैं।
__ ये ज्ञान-दर्शन हैं लक्षण जिनके ऐसे जीव तल्लक्षणवाले होते हैं । अर्थात् सभी जीव ज्ञानदर्शनोपयोग लक्षणवाले होते हैं ऐसा जानना चाहिए।
जीव के भेदों को उपसंहार करके अब अजीव के भेदों को सूचित करने हेतु अगली गाथा कहते हैं
गाथार्थ-इस तरह से अनेक भेदरूप जीवों के विभाग का मैंने संक्षेप से वर्णन किया है। उपर्युक्त प्रकार के भावों से रहित अजीव द्रव्य है ऐसा जानना चाहिए ॥२२॥
प्राचारवृत्ति---उपर्युक्त कहे गये प्रकार से जीव विभागों के विविध प्रकार मैंने संक्षेप में कहे हैं । इन कहे गये लक्षण से विपरीत लक्षणबाले द्रव्य को अजीवद्रव्य जानना चाहिए।
अजीव के भेदों का प्रतिपादन करते हैं
गाथार्थ-अजीव भी रूपी और अरूपी के भेद से दो प्रकार के होते हैं। रूपी के स्कंध, स्कंधदेश, स्कंधप्रदेश और अणु ये चार भेद हैं ॥२३०॥
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