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पंचाचाराधिकारः ]
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लक्षाणि द्वाविंशतिः । अप्कायानां कुलकोटिलक्षाणि सप्त । अग्निकायिकानां कुलकोटी लक्षाणि त्रीणि । वायुकायिकानां कुलकोटी लक्षाणि सप्त यथाक्रमेण परिसंख्या ज्ञातव्येति ॥ २२९ ॥
कोडिसदसस्साई सत्तट्ठ व णव य अट्ठवीसं च । वेदियतेइंदियचरिदियहरिदकायाणं ॥ २२२॥ श्रद्धत्तेरस बारस दसयं कुलकोडिसदसहस्साइं । जलचर पक्खिचउप्पयउरपरिसप्पेसु णव होंति ॥ २२३ ॥ छवीसं पणवीसं चउदस कुलको डिसदसहस्साइं । सुरणेरइयणराणं जहाकमं होइ णायव्वं ॥ २२४॥
कोटीशत सहस्त्राणि सप्ताष्टौ नवाष्टाविंशतिश्च यथासंख्यं द्वीन्द्रियत्रीन्द्रियचतुरिन्द्रियहरितकायानां । द्वीन्द्रियाणां कुलकोटी लक्षाणि सप्त । त्रीद्रियाणां कुलकोटी लक्षाण्यष्टौ । चतुरिंद्रियाणां कुलकोटी लक्षाणि नव । हरितकायानां कुल कोटी लक्षाण्यष्टाविंशतिरिति ॥ २२२ ॥
अर्ध त्रयोदश द्वादश, दश च कुलकोटीशतसहस्राणि जलचरपक्षिचतुष्पदां । उरसा परिसर्पन्तीति उरः परिसर्पाः, गोधासर्पादयस्तेषामुरः परिसर्पाणां णव होति--नव भवति । जलचराणां मत्स्यादीनां कुलकोटीलक्षाण्यर्ध त्रयोदश । पक्षिणां हंसभेरुण्डादीनां कुलकोटी लक्षाणि द्वादश । चतुष्पदां सिंहव्याघ्रादीनां कुलकोटी लक्षाणि दश । उरः परिसर्पाणां कुलकोटी लक्षाणि नव भवन्तीति सम्बन्धः ॥२२३॥
षड्विंशतिः पंचविंशतिः चतुर्दश कुलकोटीशतसहस्राणि सुरनारकनराणां च यथाक्रमं भवन्ति ज्ञातव्यं । देवानां कुलकोटी लक्षाणि षड्विंशतिः नारकाणां कुलकोटी लक्षाणि पंचविशतिः । मनुष्याणां कुल
करोड़ है और वायुकायिक जीवों के कुलों की संख्या सात लाख करोड़ है ऐसा जानना चाहिए । गाथार्थ - दो - इन्द्रिय, तीन- इन्द्रिय, चार- इन्द्रिय और हरितकायिक जीवों के कुल क्रमशः सात, आठ, नव और अट्ठाईस लाख करोड़ हैं ॥२२२॥
जलचर, पक्षी, पशु और छाती के सहारे चलनेवाले के कुल क्रम से साढ़े बारह बारह, दश और नव लाख करोड़ होते हैं ।। २२३ ॥
देव, नारकी और मनुष्यों के कुल क्रम से छब्बीस, पचीस और चौदह लाख करोड़ हैं ॥ २२४ ॥
आचारवृत्ति – 'यथाक्रम' शब्द २२४वीं गाथा के अन्त में है वह अन्तदीपक है अतः तीनों गाथा के साथ उसका सम्बन्ध करके अर्थ करना चाहिए । अर्थात् द्वीन्द्रिय के कुल सात लाख करोड़, त्रीन्द्रिय के आठ लाख करोड़, चतुरिन्द्रिय के नव लाख करोड़ और वनस्पतिकायिक के अट्ठाईस लाख करोड़ हैं । मत्स्य, मगर आदि जलचर हैं। हंस भेरुंड आदि पक्षी कहलाते हैं । सिंह, व्याघ्र आदि चार पैर वाले जीव पशुसंज्ञक हैं और छाती के सहारे चलने वाले गोह, दुमुही, साँप आदि उरः परिसर्प नामक होते हैं । जलचर जीवों के साढ़े बारह लाख करोड़, पक्षियों के बारह लाख करोड़, पशुओं के दश लाख करोड़ और छाती के सहारे चलने
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