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________________ [भूमाचारे अप्कायिकभेदप्रतिपादनार्थमाह ओसाय हिमग महिगा'हरदणु सुद्धोदगे घणुदगे य। ते जाण पाउजीवा जाणित्ता परिहरेदव्वा ॥२१०॥ ओसाय-अवश्यायजलं रात्रिपश्चिमाहरे निरभ्रावकाशात् पतितसूक्ष्मोदकं । हिमग-हिमं प्रालेयं जलबन्धकारणं । महिगा-महिका धूमाकारजलं कुहडरूपं । हरद'-हरत्' स्थूलविन्दुजलं। अणु-अणुरूपं सूक्ष्मविदुजलं । सुद्ध-शुद्धजलं चन्द्रकान्तजलं । उदगे-उदकं सामान्यजलं निर्झराद्युद्भवं । घणुदगे-घनोदकं समुद्रहदघनवातायुद्भवं घनाकारं । अथवा हरदणु-महाहृदसमुद्रायुद्भवं । घणुदए-मेघादुद्भवं घनाकारं, एवमाद्यप्कायिकान् जीवान् जानीहि ततः किं ? जाणित्ता-ज्ञात्वा । परिहरिदवा:-परिहर्तव्या: पालयितव्याः सरित्सागर-हृद-कूप-निर्झर-घनोद्भवाकाशज-हिमरूप-धूमरूप-भूम्युद्भव-चन्द्रकान्तजघनवाताद्यप्कायिका अत्रवान्तर्भवन्तीति ॥२१०॥ ६. नमक, ७. लोहा, ८. तांबा, ६. रांगा, १०. सीसा, ११. चाँदी, १२. सोना, १३. हीरा, १४. हरताल, १५. हिंगुल, १६. मनःशिला, १७. गेरु, १८. तूतिया, १६. अंजन, २०. प्रवाल, २१. अभ्रक, २२. गोमेद, २३. राजवर्तमणि, २४. पुलकमणि, २५. स्फटिकमणि, २६. पद्मरागमणि, २७. वैडूर्यमणि, २८. चन्द्रकांतमणि, २६. जलकान्त, ३०. सूर्यकान्त, ३१. गैरिकमणि, ३२. चन्दनमणि, ३३. मरकतमणि, ३४. पुष्परागमणि, ३५. नीलमणि और ३६. विद्रुममणि ये छत्तीस भेद हैं । इसी में मेरु पर्वत आदि सभी भेद सम्मिलित हो जाते हैं। अब जलकायिक जीवों के भेद प्रतिपादित करते हुए कहते हैं गाथार्थ-ओस, हिम, कुहरा, मोटी बूंदें और छोटी बूंदें, शुद्धजल और घनजलइन्हें जलजीव जानो और जानकर उनका परिहार करो ॥२१०॥ प्राचारवृत्ति-रात्रि के पश्चिम प्रहर में मेघ रहित आकाश से जो सूक्ष्म जलकण गिरते हैं उसे ओस कहते हैं। जो पानी घन होकर नीचे ओले के रूप में हो जाता है वह हिम है, इसे ही वर्फ कहते हैं। धूमाकार जल जो कि कुहरा कहलाता है, इसे ही महिका कहते हैं। स्थूल-बिन्दुरूप जल हरत् नामवाला है। सूक्ष्म बिन्दु रूप जल अणुसंज्ञक है। चन्द्रकान्त से उत्पन्न हुआ जल शुद्ध जल है। झरना आदि से उत्पन्न हुआ सामान्यजल उदक कहलाता है। समुद्र, सरोवर, घनवात आदि से उत्पन्न हुआ जल, जो कि घनाकार है, घनोदक कहलाता है। अथवा मह हासरोवर, समुद्र आदि से उत्पन्न हुआ जल हरदणु है और मेघ आदि से उत्पन्न हुआ घनाकार जल घनोदक है । इत्यादि प्रकार के जलकायिक जीवों को तुम जानो। उससे क्या होगा? उन जीवों को जानकर उनकी रक्षा करनी चाहिए। नदी, सागर, सरोवर, कूप, झरना, मेघ से बरसनेवाला, आकाश से उत्पन्न हुआ हिम-बर्फ रूप, कुहरा रूप, भूमि से उत्पन्न, चन्द्रकान्तमणि से उत्पन्न, घनवात आदि का जल, इत्यादि सभी प्रकार के जलकायिक जीवों का उपर्युक्त भेदों में हो अन्तर्भाव हो जाता है। १, २, ३, क हरिद । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org.
SR No.001838
Book TitleMulachar Purvardha
Original Sutra AuthorVattkeracharya
AuthorGyanmati Mataji
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages580
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Ethics, Religion, & Principle
File Size12 MB
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