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________________ 35.] [मूलाचार एवं विधाणचरियं - एवंविधां चर्यां एवप्रकारानुष्ठानं । चरंति-आचरन्ति । जे-ये । साधवो य - साधवश्च मुनयश्च । अज्जाओ–आर्याः ते साधव आर्याश्च । जगपुज्जं - जगतः पूजा जगत्पूजा तां जगत्पूजां । कितिकीर्ति यशः । सुहं च सुखं च । लक्षूण - लब्ध्वा । सिज्यंति - सिद्ध्यन्ति । एवंविधानचर्या ये चरन्ति साधव आर्याश्च ते ताश्च जगत्पूजां कीतिं सुखं च लब्ध्वा सिद्ध्यन्तीति ॥ १९६॥ ग्रन्थकर्तात्मगर्वनिरासार्थसमर्पणार्थमाह एवं सामाचारो बहुभेदो वण्णिदो समासेण । वित्थारसमावण्णो वित्थरिदव्वो बुहजणेह ॥ १६७॥ एवं - अनेन प्रकारेण । सामाचारो - सामाचारः - आगमप्रसिद्धानुष्ठानं । बहुभेदो - बहवो भेदा यस्यासौ बहुभेदो बहुप्रकारः । वण्णिदो-वर्णितः कथितः । समासेन - संक्षेपेण । वित्थारसमावण्णो-विस्तारं प्रपंचं समापन्नः प्राप्तो विस्तारयोग्यः । वित्थरियव्वो– विस्तारयितव्यः प्रपंचनीयः । बुहजणेह - बुधजनैरागमव्याकरणादिकुशलैः । एवं पूर्वस्मिन् यो बहुभेदः सामाचारोऽभूत् स मया संक्षेपेण वर्णितो यतोऽतो विस्तारयोग्यतत्वाद्विस्तारयितव्यो बुधजनैरिति । इत्याचारवृत्तौ वसुनन्दिविरचितायां चतुर्थः परिच्छेदः । टीका का अर्थ सरल है ॥ १६६ ॥ अब ग्रन्थकर्ता आचार्य अपने गर्व को दूर करने हेतु और समर्पण हेतु निवेदन करते हैं गाथार्थ - इस प्रकार से अनेक भेदरूप समाचार को मैंने संक्षेप से कहा है । बुद्धिमानों को इसका विस्तार स्वरूप जानकर इसे विस्तृत करना चाहिए ॥ १६७॥ श्राचारवृत्ति- -आगम में प्रसिद्ध अनुष्ठान रूप यह समाचार विविध प्रकार का है, इसे मैंने कहा है । चूंकि यह विस्तार के योग्य है इसलिए आगम और व्याकरण आदि में कुशल बुद्धिमान नों को इसका विस्तार से विवेचन करना चाहिए। Jain Education International इस प्रकार से श्री वट्टकेर आचार्य विरचित मूलाचार में वसुनन्दि आचार्य द्वारा विरचित आचारवृत्ति नाम की टीका में चौथा परिच्छेद पूर्ण हुआ । For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001838
Book TitleMulachar Purvardha
Original Sutra AuthorVattkeracharya
AuthorGyanmati Mataji
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages580
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Ethics, Religion, & Principle
File Size12 MB
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