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सावधाराधिकारः ]
वस्त्रवेषा जल्ल मलविलिप्तास्त्यक्तदेहा धर्म कूल कीर्ति दीक्षा प्रतिरूप विशुद्धचर्याः सन्त्यस्तिष्ठन्तीति समुदायार्थः ॥ १६२॥
कि ताभिः परगृहं न कदाचिदपि गन्तव्यमित्यतः आह
य परगेहमकज्जे गच्छे कज्जे अवस्सगम णिज्जे । गणिणीमापुच्छित्ता संघाडेणेव गच्छेज्ज ॥ १६२॥
णय-न च । परगेहं - परगृहं गृहस्थनिलयं यतिनिलयं वा । अकज्जे – अकार्येऽप्रयोजने कारणमन्तरेण | गच्छे – गच्छेयुः यान्ति । कज्जे-कायें उत्पन्ने प्रयोजने । अवस्सगमणिज्जे - अवश्यं ममनीयेऽवश्यं वन्तव्ये भिक्षाप्रतिक्रमणादिकाले । गणिणों-गणिनी महत्तरिकां । आपुच्छिता - आपृच्छ्यानुज्ञां लब्ध्वा । संघाडेणेव—संघाटकेनैवान्याभिः सह । गच्छेज्ज -- गच्छेयुः गच्छन्तीति । परगृहं च ताभिर्न मन्तव्यं, कि. सर्वथा नेत्याह अवश्यंगमनीये कार्ये गणिनीमापृछ्य संघाटकेनैव गन्तव्यमिति ॥ १६२ ॥
स्ववासे परगृहे वा एताः क्रियास्ताभिर्न कर्तव्या इत्यत आह
संचरण युक्त वसतिका में ये आर्यिकाएँ दो या तीन अथवा तीस या चालीस पर्यन्त भी एक साथ रहती हैं ।
तात्पर्य यह हुआ कि ये आर्यिकाएँ उपर्युक्त बाधारहित और सुविधायुक्त वसतिका में कम से कम दो या तीन अथवा अधिक रूप से तीस या चालीस पर्यन्त एक साथ मिलकर रहती हैं । ये परस्पर में एक-दूसरे की अनुकूलता रखती हुईं एक-दूसरे की रक्षा के अभिप्राय को धारण करती हुईं, रोष वैर माया से रहित लज्जा, मर्यादा और क्रियाओं से संयुक्त; अध्ययन, मनन, श्रवण, उपदेश, कथन, तपश्चरण, विनय, संयम और अनुप्रेक्षाओं में तत्पर रहती हुई ज्ञानाभ्यास-उपयोग तथा शुभयोग से संयुक्त, निर्विकार वस्त्र और वेष को धारण करती हुईं, पसीना और मैल से लिप्त काय को धारण करती हुईं, संस्कार -श्रृंगार से रहित; धर्म, कुल, यश, और दीक्षा के योग्य निर्दोष आचरण करती हुईं अपनी वसतिकाओं में निवास करती हैं ।
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क्या इन्हें परगृह में कदाचित् भी नहीं जाना चाहिए ? ऐसा प्रश्न होने पर कहते हैं- बिना कार्य के पर-गृह में नहीं जाना चाहिए और अवश्य जान योग्य कार्य में गणिनी से पूछकर साथ में मिलकर ही जाना चाहिए ॥ १६२ ॥
प्राचारवृत्ति - आर्यिकाओं के लिए गृहस्थ के घर और यतियों की वसतिकाएँ परगृह हैं। बिना प्रयोजन के आर्यिकाएँ परगृह न जायें। यदि गृहस्थ के यहाँ भिक्षा आदि लेना और मुनियों के यहाँ प्रतिक्रमण, वन्दना आदि प्रयोजन से जाना है तो गणिनी से पूछकर पुनः कुछ आर्यिकाओं को साथ लेकर ही जाना चाहिए, अकेली नहीं जाना चाहिए '
अपने निवास स्थान में अथवा पर गृह में आर्यिकाओं को निम्नलिखित क्रियाएँ नहीं करना चाहिए, उन्हें ही बताते हैं
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