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________________ ११६] [मूलाचारे वायणपडिछण्णाए उवदेशे सुत्त प्रत्यकहणाए। अवितहदति बुमो पडिग्छणाए तधाकारो॥१३३॥ बायजाछिपणाए-वाचनत्य जीवादिपदार्थव्याख्यानस्य प्रतीच्छा श्रवणं वाचनाप्रतीच्छा तस्यां, सिद्धान्तश्रवणे। उवदेसे-उपदेशे आचार्यपरम्परागतेऽविसंवादरूपे मंत्रतंत्रादिके। सुत्तअत्थकहणाए-सूचनात्सुक्ष्मार्थस्य सूत्रं वृतिक निकभापनिवन्धन तस्यार्मो जीवादयस्तस्य तयोर्वा कथनं प्रतिपादनं तस्मिन् सूत्रार्थकथने कथनायां वा । अवितह-अवितथं सत्यं एवमेव। एतदेत्ति-एतदिति यद्भट्टारकै: कथितं तदेवमेवेति नान्यथेति कृत्वा। पुणो–पुनः। पछि पाए–पतीच्छायां पुनरपि यच्छ्वणं क्रियते । तधाकारोतथाकारः । वाचनाप्रतिश्रवणे उपदेशे सूत्रार्थयोजने गुरुणा क्रियमाणे अवितथमेतदिति कृत्वा पुनरपि यच्छवणं तत्तथाकार इति ॥१३३॥ केषु प्रदेशेषु प्रविशता निषेधिका क्रियते इत्याह कंदरपुलिणगुहादिसु पवेसकाले णिसोहियं कुज्जा तेहितो णिग्गमणे तहासिया होदि कायव्वा ॥१३४॥ कंदरं-कंदरः उदकदारितप्रदेशः । पुलिणं-पुलिनं जलमध्ये जलरहितप्रदेशः । गुहा--पर्वतपार्श्वविवरं ता आदिर्येषां ते कन्दरपुलिनगुहादयस्तेषु अन्येषु च निर्जन्तुकप्रदेशेषु नद्यादिषु । पवेसकाले गाथार्थ-गुरु के मुख से वाचना के ग्रहण करने में, उपदेश सुनने में और गुरु द्वारा सूत्र तथा अर्थ के कथन में यह सत्य है ऐसा कहना और पुनः श्रवण की इच्छा में तथाकार होता है ।।१३३॥ प्राचारवृत्ति-जीवादि पदार्थों का व्याख्यान करना वाचना है, उसकी प्रतीच्छा करना-श्रवण करना वाचनाप्रतीच्छा है। अर्थात् गुरु के मुख से सिद्धान्त-ग्रन्थों को सुनना वाचना है। आचार्य परम्परागत, अविसंवाद रूप मन्त्र-तन्त्र आदि जिसका गुरु वर्णन करते हैं, उपदेश कहलाता है। सूक्ष्म अर्थ को सूचित करने वाले वाक्य को सूत्र कहते हैं जो कि वृत्ति, वार्तिक और भाष्य के कारण हैं । अर्थात् सूत्र का विशद अर्थ करने के लिए वृत्ति, वार्तिक और भाष्य रूप रचनाएँ होती हैं उन्हें टीका कहते हैं। सूत्र के द्वारा जीवादि पदार्थों का प्रतिपादन किया जाता है वह उस सूत्र का अर्थ कहलाता है । इस प्रकार से सूत्र के अर्थ का कथन करना या सूत्र और अर्थ दोनों का कथन करना सूत्रार्थ-कथन है । गुरु ने सिद्धान्त ग्रन्थ पढ़ाया या उपदेश दिया अथवा सूत्रार्थ का कथन किया उस समय ऐसा बोलना कि 'हे भट्टारक! आपने जो कहा है वह ऐसा ही है वह अन्य प्रकार नहीं हो सकता है', तथा पुनरपि उसे सुनने की इच्छा रखना या सुनना यह तथाकार कहलाता है। किन प्रदेशों में प्रवेश करते समय निषेधिका करना चाहिए ? सो बताते हैं गाथार्थ-कंदरा, पुलिन, गुफा आदि में प्रवेश करते समय निषेधिका करना चाहिए तथा वहाँ से निकलते समय आसिका करना चाहिए ॥१३४।। प्राचारवृत्ति-जलप्रवाह से विदीर्ण हुआ-विभक्त प्रदेश कंदरा कहलाता है। नदी अथवा सरोवर के जल रहित प्रदेश को पुलिन अथवा सैकत कहते हैं । अथवा 'सिकतानां समूहः सकतं' अर्थात् जहाँ बालू का ढेर रहता है वह सैकत है । पर्वत के पार्श्व भाग में जो बिल-बड़े For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.001838
Book TitleMulachar Purvardha
Original Sutra AuthorVattkeracharya
AuthorGyanmati Mataji
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages580
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Ethics, Religion, & Principle
File Size12 MB
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