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बृहत्प्रत्यास्पानसंस्तरस्तवाधिकारः]
|६५ जे पुण पणट्टमदिया पचलियसण्णा य वक्कभावा य।
असमाहिणा मरते ण हु ते आराहया भणिया ॥६०॥ जे पुण–ये पुनः । पण?मदिया--प्रणष्टा विनष्टा मतिर्येषां ते प्रणष्टमतिकाः अज्ञानिनः : पचलियसण्णा य–प्रचलिता उद्गता संज्ञा आहारभयमथुनपरिग्रहाभिलाषा येषां ते प्रचलितसंज्ञकाः। वक्कभावा य-कूटिलपरिणामाश्च । असमाहिणा-असमाधिना आर्तरौद्रध्यानेन । मरते-म्रियन्ते भवान्तरं गच्छन्ति । जह-न खलु । आराहया-आराधकाः कर्मक्षयकारिणः । भणिया-भणिता: कथिताः। ये प्रणष्टमतिकाः प्रचलितसंज्ञा वक्रभावाश्च ते असमाधिना म्रियन्ते स्फुटं न ते आराधका भणिता इति । यदि मरणकाले विपरिणामः स्यात्ततः किंस्यादिति पृष्टे आचार्यः प्राह
मरणे विराहिए देवदुग्गई दुल्लहा य किर बोही।
संसारो य अणंतो होइ पुणो आगमे काले ॥६॥ मरणे-मृत्युकाले । विराहिए-विराधिते विनाशिते मरणकाले सम्यक्त्वे विराधित इत्यर्थः मरण
विशेषार्थ अन्यत्र ग्रन्थों में मरण के पाँच भेद किये हैं—बालबाल, बाल, बालपण्डित, पण्डित और पण्डितपण्डित । इनमें से प्रथम बालबाल-मरण मिथ्यादृष्टि करते हैं, और पण्डितपण्डित-मरण केवली भगवान् करते हैं। यहाँ पर मध्य के तीन मरणों को ही माना है और केवली भगवान् के मरण को पण्डितमरण में ही गभित कर दिया है ।
___इन तीन के अतिरिक्त, और अन्य प्रकार के मरण कैसे होते हैं ? ऐसा प्रश्न होने पर उत्तर देते हैं
गाथार्थ-जो पुनः नष्टबुद्धिवाले हैं, जिनकी आहार आदि संज्ञाएँ उत्कट हैं और जो कुटिल परिणामी हैं वे असमाधि से मरण करते हैं। निश्चितरूप से वे आराधक नहीं कहे गये हैं ॥६०॥
प्राचारवृत्ति—जिनकी मति नष्ट हो गयी है वे नष्टबुद्धि अज्ञानी जीव हैं। आहार, भय, मैथुन और परिग्रह की अभिलाषारूप संज्ञाएँ जिनके उत्पन्न हुई हैं अर्थात् उत्कृष्ट रूप से प्रकट हैं और जो मायाचार परिणाम से युक्त हैं, वे जीव आर्त-रौद्रध्यानरूप असमाधि से भवान्तर को प्राप्त करते हैं। वे कर्मक्षय के करनेवाले ऐसे आराधक नहीं हो सकते हैं ऐसा समझना।
यदि मरणकाल में परिणाम बिगड़ जाते हैं तो क्या होगा ? ऐसा प्रश्न होने पर आचार्य कहते हैं
गाथार्थ-मरण की विराधना हो जाने पर देवदुर्गति होती है तथा निश्चितरूप से बोधि की प्राप्ति दुर्लभ हो जाती है, और फिर आगामी काल में उस जीव का संसार अनन्त हो जाता है ॥६१॥
प्राचारवृत्ति-मरणकाल में सम्यक्त्व की विराधना हो जाने पर देवदुर्गति होती है। यहाँ पर गाथा में जो मरण की विराधना कही गयी है उसका मतलब मरणकाल में जो सम्यक्त्व
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