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________________ [मूलाचारे क्षमणं कृत्वा क्षपकः संन्यासं कर्तुकामो मरणभेदान् पृच्छति कति मरणानि? आचार्यः प्राह तिविहं भणंति मरणं बालाणं बालपंडियाणं च। तइयं पंडियमरणं जं केवलिणो अणुमरंति ॥५६॥ तिविहं-त्रिविधं त्रिप्रकारम् । भणंति-कययन्ति । मरणं-गृत्यु । बालागं-बालानां असंयतसम्यग्दृष्टीनां। बालपंडियाणं च-बालाश्च ते पंडिताश्च बालपंडिताः । संयतासंयता एकेन्द्रियाविरतेर्बालाः दीन्द्रियादिबधविरता: पंडिताः। तइयं-तृतीयं । पंडियमरणं-पंडितमरणं मंडितानां मरणं देहपरित्यागः देहस्यान्यथाभावो वा पंडितमरणं । जं-यत् येन वा। केवलिणो केवलं शुद्धं ज्ञानं विद्यते येषां केवलिनः । अणुमरंति -अनुम्रियन्ते अर्हद्भट्टारका गणधरदेवाश्च त्रिप्रकारं मरणं भणंति । प्रथमं बालमरणं बालजीवस्वामित्वात्, द्वितीयं बालपंडितमरणं बालपंडितस्वामित्वात्, तृतीयं पंडितमरणं येन केदलिनोऽनुम्रियन्ते। संयताश्च पंडितपंडितमरणस्यात्रव पंडितेन्तर्भावः सामान्यसंयमस्वामित्वाभेदादिति। अन्यत्र बालबालमरणमुक्तं तदत्र किमिति सत्वा नोक्तं तेन प्रयोजनाभावात् । ये अकुटिला ज्ञानदर्शनयुक्तास्ते एतैमरणम्रियन्ते । अन्यथाभूताश्च कथमित्युत्तरमूत्रमाहउसके लिए और जिस किसी साधु को भी कहा है उन सभी से मैं क्षमा चाहता हूँ। अब क्षमापना करके संन्यास करने की इच्छा करता हआ क्षपक, मरण कितने प्रकार के हैं ? ऐसा प्रश्न करता है और आचार्य उसका उत्तर देते हैं गागा--मरण को तीन प्रकार का कहते हैं—बालजीवों का मरण, बालपण्डितों का मरण और तीसरा पण्डितमरण है। इस पण्डितमरण को केवली-मरण भी कहते हैं ॥५६॥ . प्राचारवृत्ति-अर्हन्त भट्टारक और गणधरदेव मरण के तीन भेद कहते हैं—बालमरण, बालपण्डितमरण और पण्डितमरण । असंयतसम्यग्दृष्टि जीव बाल कहलाते हैं। इनका मरण बालमरण है। संयतासंयत जीव बालपण्डित कहलाते हैं क्योंकि एकेन्द्रिय जीवों के वध से विरत न होने से ये बाल हैं और द्वीन्द्रिय आदि जीवों के वध से विरत होने से पण्डित हैं इसलिए इनका मरण भी बालपण्डित-मरण है। पण्डितों का मरण अर्थात् देह परित्याग अथवा शरीर का अन्यथा रूप होना पण्डितमरण है जिसके द्वारा केवल शुद्ध ज्ञान के धारी केवली भगवान् मरण करते हैं, तथा संयतमरण करते हैं । यहाँ संयत शब्द से छठे से लेकर चौदहवें गुणस्थान तक संयत विवक्षित है। यद्यपि केवली भगवान् के मरण को पण्डितपण्डित-मरण कहते हैं किन्तु यहाँ पर पण्डितमरण में ही उसका अन्तर्भाव कर लिया गया है क्योंकि संयम के स्वामी में सामान्यतः भेद नहीं है। प्रश्न-अन्यत्र ग्रन्थों में बाल-बालमरण भी कहा है उसको यहाँ क्यों नहीं कहा ? उत्तर-उसका यहाँ प्रयोजन नहीं है, क्योंकि जो अकुटिल-सरल परिणामी हैं, ज्ञान और दर्शन से युक्त हैं वे इन उपर्युक्त तीन मरणों से मरते हैं । अर्थात् पहला बालमरण है उसके स्वामी असंयतसम्यग्दृष्टि ऐसे बालजीव हैं। दूसरा बालपण्डित है जिसके स्वामी देशसंयत ऐसे बालपण्डित जीव हैं। तीसरा पण्डितमरण है जिसके स्वामी संयत जीव हैं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001838
Book TitleMulachar Purvardha
Original Sutra AuthorVattkeracharya
AuthorGyanmati Mataji
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages580
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Ethics, Religion, & Principle
File Size12 MB
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