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प्रस्तावना
[१६] संस्कृत पञ्जिका
प्रस्तुत ग्रन्थ के प्रथम परिशिष्ट में संस्कृत पञ्जिका भी मुद्रित की गयी है । संस्कृत व्याख्याकी भाँति यह भी अभी तक अप्रकाशित रहो । जिसमें ग्रन्थके क्लिष्ट पदोंका अर्थ खोला जाये, उसे पञ्जिका कहते है - 'विषमपदभञ्जिका पञ्जिका' - यह परिभाषा प्रस्तुत पञ्जिकामें अक्षरशः घटित होती है । द्वितीय सर्गके दार्शनिक पद्यों पर इसमें अच्छा प्रकाश डाला गया है, जिससे पञ्जिकाकारका दार्शनिक वैदुष्य व्यक्त होता है । प्रारम्भिक दो सगँकी पञ्जिका व्याख्याका काम करती है। इसकी रचना अपेक्षाकृत प्रौढ़ है ।
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पञ्जिकाकारका नाम-जिन आदर्श प्रतियों के आधारपर इसका सम्पादन किया गया है, उनमें इसके रचयिताका नाम अङ्कित नहीं है, पर डॉ० कस्तूरचन्द्रजी कासलीवाल, जयपुरने अपने यहाँको हस्तलिखित प्रतियाँ देख कर इनका नाम गुणनन्दी बतलाया है, जो 'जिनरत्नकोष' ( भाग १, पृ० १२० ) में भी दिया गया है ।
पञ्जिकाकारका समय - 'जिनरत्न कोष' ( भा० १, पृ० १२० ) में पञ्जिकाकारका समय वि० सं० १५९७ दिया गया है । पञ्जिका में अनगारधर्मामृत, अनेकार्थध्वनिमञ्जरी, अमरकोष, आत्मानुशासन, आप्तमीमांसा, कामन्दकीय नीतिसार, काव्यादर्श, तत्त्वार्थसूत्र, पञ्चसंग्रह, पद्मनन्दिपञ्चविंशतिका, माधव - निदान, रघुवंश, और वाग्भटालङ्कार आदि ग्रन्थोंके उद्धरण दृष्टिगोचर होते हैं । इनमें से अनगारधर्मामृतकी रचना वि० सं० १३०० में समाप्त हुई। इससे पञ्जिकाकार आशाधरके उत्तरवर्ती सिद्ध होते हैं । पञ्जिकाकारने प्रथमको छोड़ कर शेष सभी सर्गों की पञ्जिकाके प्रारम्भ में श्रुतमुनिका जयघोष किया है और उनके वैदुष्की श्लाघा भो । वि० सं० १३९८ में समाप्त परमागमसार के रचयिताका नाम भी श्रुतमुनि है । यदि इन्हींका जयघोष पञ्जिकाकारने किया हो तो वे इनसे परवर्ती ही ठहरते हैं । ऐसी स्थिति में जिनरत्नकोष ( भा० १, पृ० १२० ) में दिया गया इनका समय ( वि० सं० १५९७ ) सही-सा प्रतीत होता है । विशेष निर्णय के लिए अन्य सामग्रीकी अपेक्षा है ।
इस तरह प्राप्त सामग्री के आधारपर ग्रन्थ, ग्रन्थकार, व्याख्याकार और पञ्जिकाकारके विषय में संक्षिप्त प्रकाश डाला गया है ।
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१. 'जैन साहित्यका बृहद् इतिहास' ( भाग ५, पृष्ठ २४१ ) के अनुसार 'कामन्दकीय नीतिसारः ' का संकलन उपाध्याय भानुचन्द्र के शिष्य सिद्धिचन्द्र ( अकबर बादशाह के समकालीन ) ने किया था । यदि यह प्रमाणित हो जाये तो पञ्जिकाकार के समय पर पर्याप्त प्रकाश पड़ सकता है ।
प्रस्ता०-५
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- अमृतलाल शास्त्री
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