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________________ प्रस्तावना [ ख ] अवतरणोंके चिह्न और मूल स्थलोंके निर्देश प्रस्तुत ग्रन्थकी व्याख्या में ३२९ तथा पञ्जिकामें ६३ अवतरण ग्रन्थान्तरोंके हैं । उन्हें ' इस चिह्नसे पहचाना जा सकता है । अधिकांश अवतरणोंके मूल स्थलोंके निर्देश [ गया है, और अशुद्ध अवतरणोंको मूल ग्रन्थोंके आधारपर शुद्ध भी किया गया है । ] ऐसे कोष्ठकों में किया , उद्धृत कोषवाक्यों के मूल 'स्थलोंका निर्देश अनेकार्थध्वनिमञ्जरी, अनेकार्थं नाममाला, अनेकार्थसंग्रह, अभिधानचिन्तामणि, अमरकोष, धनञ्जयनाममाला, विश्वप्रकाश, विश्वलोचन और वैजयन्ती - इन ९ संस्कृत कोषोंके आधारपर कर दिया है, पर 'विश्व' कोषके न मिलनेसे उसके स्थलोंका निर्देश नहीं किया जा सका । इस कोष के अवतरण जैन व जैनेतर काव्योंकी टीकाओंमें पाये जाते हैं, पर यह ज्ञात नहीं हो सका कि यह प्रकाशित या अप्रकाशित । ७ अप्रकाशित कोष - प्राचीन संस्कृत कोष पद्य शैली में निबद्ध मिलते हैं, पर चं० च० की व्याख्या में नानार्थकोष के नामसे लगभग पन्द्रह अवतरण गद्यसूत्रोंके रूपमें हैं । अर्हद्दासकृत मुनिसुव्रत काव्यम् और पाश्वभ्युदयम्की सं० टी० में भी इसी कोषके अनेक अवतरण हैं, पर मुनिसु० की सं० टी० में पृ० १४३ पर जिस अवतरण के आगे 'नानार्थ कोषे' लिखा है, उसीके आगे पृ० १८१ पर 'नानार्थरत्नकोषे' । संभवतः इस कोष के दो नाम प्रसिद्ध रहे हों। जो कुछ भी हो, यह कोष अभी तक कहीं से प्रकाशित नहीं हुआ । जैन साहित्यका बृहद् इतिहास भाग ५ ( पृ० ९३ ) से ज्ञात होता है कि इसके रचयिता असग थे ।' [ग] टिप्पण प्रस्तुत ग्रन्थमें व्याख्याकारके अभिप्रायको स्पष्ट या पुष्ट करनेके लिए यत्र-तत्र टिप्पण भी दिये गये हैं, जिनमें कुछ तुलनात्मक भी हैं । टिप्पणों में कुछ अन्य ग्रन्थोंके, विशेषतः कोषोंके अनेक वाक्य उद्धृत किये गये हैं । प्रायः प्रत्येक पृष्ठके नीचे मूल ग्रन्थ और उसकी व्याख्या के पाठान्तरोंके साथ ही टिप्पण दिये गये हैं । तीनों के लिए हिन्दी अङ्कों का उपयोग किया गया है। मूल श्लोकों और व्याख्याके पदोंपर डाले गये अङ्कों के आधारपर नीचे डाले गये अङ्कोंको देखकर यह स्पष्टतया समझा जा सकता है कि मूलके या व्याख्याके पाठान्तर कौनसे हैं । टिप्पण, पाठान्तरोंमें रले-मिले हैं, पर वे ' = इस चिह्न से समझे जा सकते हैं । ' पृथक् ही [घ] परिशिष्ट प्रस्तुत ग्रन्थ के अन्त में निम्नलिखित परिशिष्ट जोड़े गये हैं - १. संस्कृत पञ्जिका, २ मूलग्रन्थकी पद्यानुक्रमणिका, ३. व्याख्या के अवतरणोंकी अनुक्रमणिका ४ पञ्जिकाके अवतरणोंकी अनुक्रमणिका, ५. मूलग्रन्थकी सूक्तियाँ, ६. मूल ग्रन्थ गत विशिष्ट शब्द-सूची, ७. व्याख्यान्तर्गत विशिष्ट शब्द-सूची, ८. पञ्जिकान्तर्गत विशिष्ट शब्द सूची, ९. चं० च० में प्रयुक्त छन्दों का विवरण और १०. संकेत विवरण । २] ग्रन्थ- परिचय नाम -- अष्टम तीर्थङ्कर चन्द्रप्रभके जीवन वृत्तको लेकर लिखे गये प्रस्तुत महाकाव्यका नाम 'चन्द्रप्रभचरितम्' है, जैसा कि प्रतिज्ञावाक्य ( १, ९ ), पुष्पिका वाक्यों तथा 'श्रीजिनेन्दुप्रभस्येदं चरितं ' इत्यादिपद्य ( पृ० ४६० ) से स्पष्ट है । Jain Education International १. 'नानार्थ कोश' के रचयिता असग नामक कवि थे, ऐसा मात्र उल्लेख प्राप्त होता । वे शायद दिगम्बर जैन गृहस्थ थे । वे कब हुए और ग्रन्थकी रचनाशैली कैसी है, यह ग्रन्थ प्राप्त नहीं होनेसे कहा नहीं जा सकता । - जैन साहित्यका बृ० इ० भाग ५ पृ० ९३ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001837
Book TitleChandraprabhacharitam
Original Sutra AuthorVirnandi
AuthorAmrutlal Shastri
PublisherLalchand Hirachand Doshi Solapur
Publication Year1971
Total Pages616
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size14 MB
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