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आप्तमीमांसा [ परिच्छेद-१० स्यात् शब्दके विषयमें आचार्य समन्तभद्रने इस कारिकामें बतलाया है कि वह अनेकान्तद्योती और गम्यका विशेषण होता है । अकलंक देवने अष्टशती नामक भाष्यमें लिखा है__ 'क्वचित्प्रयुज्यमानः स्याच्छब्दस्तद्विशेषणतया प्रकृतार्थतत्त्वमनवयवेन सूचयति, प्रायशो निपातानां तत्स्वभावत्वादेवकारादिवत्' ।
अर्थात् 'स्यादस्ति घटः' इत्यादि स्थल में प्रयुक्त स्यात् शब्द उसका विशेषण होनेसे प्रकृत अर्थके स्वरूपको पूर्णरूपसे सूचित करता है । प्रायः एवकार आदिकी तरह निपातोंका वैसा ही स्वभाव होता है।
आचार्य विद्यानन्दने अष्टसहस्रीमें लिखा है
द्योतकाश्च भवन्ति निपाता इति वचनात् स्याच्छब्दस्यानेकान्तद्योतकत्वेऽपि न कश्चिद्दोषः, सामान्योपक्रमे विशेषाभिधानमिति न्यायाज्जीवादिपदोपादानस्याप्यविरोधात् स्याच्छब्दमात्रयोगादनेकान्तसामान्यप्रतिपत्तेरेव संभवात् । सूचकत्वपक्षे तु गम्यमर्थरूपं प्रति विशेषणं स्याच्छब्दस्तस्य विशेषकत्वात् । न हि केवलज्ञानवदखिलमक्रममवगाहते किञ्चिद्वाक्यं येन तदभिधेयविशेषरूपसूचकः स्यादिति न प्रयुज्यते ।
अर्थात् निपात द्योतक भी होते हैं। इसलिए स्यात् शब्दको अनेकान्तका द्योतक होने पर भी कोई दोष नहीं है। 'सामान्यका उपक्रम होने पर विशेषका कथन होता है' इस न्यायसे 'स्याज्जीवः' यहाँ जीवादि पदके ग्रहण करने में भी कोई विरोध नहीं है। केवल स्यात् शब्दके प्रयोगसे अनेकान्तसामान्यकी ही प्रत्तिपत्ति संभव है। सूचक पक्षमें तो गम्य अर्थका विशेषक ( भेदक या समर्थक) होनेसे स्यात् शब्द गम्य अर्थका विशेषण होता है। कोई भी वचन केवलज्ञानकी तरह सम्पूर्ण वस्तुका युगपत् अवगाहन नहीं कर सकता है, जिससे कि उस वाक्यके अभिधेय अर्थके विशेषरूप ( स्वरूप) का सूचक स्यात् शब्दका वाक्यमें प्रयोग न किया जाय।
आचार्य वसुनन्दिकी वृत्तिसहित मुद्रित आप्तमीमांसामें 'गम्यं प्रति विशेषणम्' के स्थानमें 'गम्यं प्रति विशेषक:' ऐसा पाठ है। 'विशेषणम्' के स्थानमें 'विशेषकः' पाठ अधिक उपयुक्त मालूम पड़ता है । पुल्लिग निपात शब्दके साथ 'विशेषक:' की संगति भी बैठ जाती है। आचार्य विद्यानन्दने भी 'तस्य विशेषकत्वात्' कह कर उसको विशेषक माना भी है।
आचार्य वसुनन्दिने अपनी वृत्तिमें लिखा है
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