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________________ ३०४ आप्तमीमांसा [परिच्छेद-१० कर्ता कहना कितने आश्चर्य की बात है। जिस प्रकार एक स्वभाववाला ईश्वर संसारका कर्ता नहीं हो सकता है, उसी प्रकार ईश्वरकी एक स्वभाव युक्त इच्छा भी संसारका कारण नहीं है। नित्य, अपरिणामी और एकस्वभाववाली इच्छामें वस्तुत्व ही संभव नहीं है, फिर उससे विचित्र कार्योंकी उत्पत्ति कैसे हो सकती है। नित्य इच्छाका ईश्वरके साथ सम्बन्ध भी नहीं बन सकता है। क्योंकि ईश्वरके द्वारा इच्छाका कुछ भी उपकार नहीं होता है, और उपकारके अभावमें उन दोनोंमें सम्बन्ध कैसे होगा। यदि माना जाय कि ईश्वर नित्य इच्छाका उपकार करता है, तो वह उपकारको इच्छासे अभिन्न करता है या भिन्न । यदि अभिन्न उपकार करता है, तो इच्छा नित्य नहीं रहेगी। और भिन्न उपकार करने में 'यह उपकार इच्छाका है' ऐसा कथन नहीं हो सकता है। तात्पर्य यह है कि ईश्वरके द्वारा इच्छाका उपकार नहीं होता है, और उपकारके अभावमें ईश्वरके साथ उसका सम्बन्ध नहीं हो सकता है। अतः यह ईश्वरकी इच्छा या सिसृक्षा है, ऐसा कथन भी संभव नहीं है । ईश्वरकी इच्छाको अनित्य माननेमें भी वही पूर्वोक्त दूषण आते हैं। अनित्य इच्छाका भी ईश्वर द्वारा उपकार न होनेसे ईश्वरके साथ उसका सम्बन्ध नहीं होगा और सम्बन्धके अभावमें यह ईश्वरकी इच्छा है, ऐसा व्यपदेश नहीं होगा। सम्पूर्ण कार्योंकी उत्पत्ति, विनाश और स्थितिमें यदि ईश्वरकी इच्छा एक ही रहती है, तो एक साथ ही सब पदार्थोंकी उत्पत्ति, विनाश और स्थिति होना चाहिए। एक समयमें एक पदार्थकी उत्पत्ति और दूसरेका विनाश नहीं होना चाहिए। ___उक्त दोषका निवारण करनेके लिए ईश्वरकी इच्छाको अनेक माननेसे भी कोई लाभ नहीं है। क्योंकि अनेक इच्छाओंके विषयमें दो विकल्प होते हैं-अनेक इच्छाएँ क्रम रहित हैं, या क्रम सहित । यदि क्रम रहित हैं, तो सब पदार्थों की उत्पत्ति आदि एक साथ ही होना चाहिए। और यदि अनेक इच्छाएँ क्रमसे होती हैं, तो एक समयमें एक ही इच्छाका सद्भाव होनेसे एक ही कार्यकी उत्पत्ति या विनाश या स्थिति होना चाहिए। और ऐसा होनेपर एक समयमें अनेक कार्योकी जो उत्पत्ति आदि देखी जाती है, वह कैसे होगी। ईश्वरकी अनित्य इच्छाकी उत्पत्तिके विषयमें भी दो विकल्प होते हैं-इच्छाकी उत्पत्ति विना इच्छाके ही होती है या इच्छा पूर्वक होती है। यदि विना इच्छाके इच्छाकी उत्पत्ति होती Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org,
SR No.001836
Book TitleAptamimansa Tattvadipika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaychandra Jain
PublisherGaneshprasad Varni Digambar Jain Sansthan
Publication Year
Total Pages498
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size9 MB
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