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आप्तमीमांसा
[ परिच्छेद- १०
नहीं होता है । इसी प्रकार मोहरहित अल्प ज्ञानसे मोक्ष होता है, किन्तु मोह सहित अल्प ज्ञानसे मोक्ष नहीं होता है ।
ज्ञानावरण आदि आठ कर्मों में से मोहनीय एक कर्म है । उस मोहनीय कर्मकी कषाय आदि २८ प्रकृतियां हैं। मोहनीय कर्म सहित अथवा क्रोधादि कषाय सहित जो मिथ्याज्ञान है उसीसे बन्ध होता है । कहा भी है- सकषायत्वाज्जीवः कर्मणो योग्यान् पुद्गलानादत्ते
स बन्धः ।
कषाय सहित होने के कारण जीव कर्मके योग्य पुद्गलों का जो ग्रहण करता है वह बन्ध है । इससे सिद्ध होता है कि बन्धका प्रधान कारण कषाय हैं । बन्ध चार प्रकारका है प्रकृतिबन्ध, प्रदेशबन्ध स्थितिबन्ध और अनुभागबन्ध । इनमेंसे प्रथम दो बन्ध योग से होते हैं, और अन्तिम दो बन्ध कषायसे होते हैं । कषायनिमित्तक बन्धमें फलदानसामर्थ्य होने उसीका प्राधान्य है । अतः मोह सहित अज्ञान से ही बन्ध होता है । मोह रहित अज्ञानसे बन्ध मानना उचित नहीं है । उपशान्तकषाय नामक ग्यारहवें गुणस्थानमें और क्षीणकषाय नामक बारहवें गुणस्थानमें केवलज्ञान न होनेसे अज्ञान तो है, किन्तु कषाय नहीं है । यदि कषायरहित अज्ञानसे बन्ध हो, तो वहाँ भी बन्धका प्रसंग प्राप्त होगा । और ऐसा मानना आगमविरुद्ध है । कषाय स्थितिबन्ध और अनुभागबन्धका कारण है । इसलिए ग्यारहवें और बारहवें गुणस्थानमें प्रकृति और प्रदेश बन्धके होने पर भी स्थिति और अनुभाग बन्ध नहीं होता है । स्थिति और अनुभाग बन्धके अभाव में प्रकृतिबन्ध और प्रदेशबन्ध अभिमत फल देने में समर्थ नहीं होते हैं । प्रकृति और प्रदेशबन्ध सयोगकेवलीके भी होते हैं, किन्तु वे कोई फल नहीं देते हैं । कषाय सहित अज्ञान ही कर्मफलका कारण होता है, इस बात की सिद्धि अनुमान से भी होती है, वह अनुमान इस प्रकार है- 'प्राणिनामिष्टानिष्टफलदानसमर्थ पुद्गल विशेष सम्बन्धः कषायैकार्थसमवेताज्ञाननिबन्धनस्तथात्वात् ।' प्राणियोंको इष्ट और अनिष्ट फल देने में समर्थ जो कर्मरूप परिणत पुद्गलका सम्बन्ध है, वह एक ही आत्मामें स्थित कषायसहित अज्ञान के कारण है, क्योंकि वह इष्ट और अनिष्टफल देने में समर्थ है । इस बात में कोई विवाद नहीं है कि कर्मबन्ध इष्ट और अनिष्ट फलको देने में समर्थ है। क्योंकि सुख और दुःखका अनुभव प्रत्येक प्राणी करता है। इस सुख और दुःखका कारण क्या है। इसका कारण यदि दृष्ट
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