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________________ ३० आप्तमीमांसा-तत्त्वदीपिका होगा। क्योंकि यह व्याख्या अष्टशती और अष्टसहस्रीके आलोकमें लिखी गयी है। आप्तमीमांसाका मूलाधार यद्यपि आचार्य समन्तभद्र ने ऐसा कोई संकेत नहीं दिया है कि आप्तमीमांसाको रचनाका आधार 'मोक्षमार्गस्य नेतारम्' इत्यादि मंगल श्लोक है, किन्तु आचार्य विद्यानन्दके अनेक उल्लेखोंसे यह सिद्ध होता है कि आचार्य समन्तभद्रने उसी आप्तकी मीमांसा की है, जिसकी उक्त मंगल श्लोकमें वन्दना की गयी है। अकलंकदेवने भी इस विषयमें कुछ नहीं लिखा है। हो सकता है कि आचार्य विद्यानन्दको वैसा लिखनेके लिए कोई आधार प्राप्त रहा हो अथवा उनका स्वयंका कोई अनुमान हो। फिर भी आचार्य विद्यानन्दके निम्नलिखित उल्लेख ध्यान देने योग्य हैं। १. “शास्त्रावताररचितस्तुतिगोचराप्तमीमांसितं कृतिः' ___ अष्टस० पृ० १ २. "शास्त्रारंभेऽभिष्टुतस्याप्तस्य........ भगवदर्हत्सर्वज्ञस्यैवान्ययोगव्यवच्छेदेन व्यवस्थापनपरा परीक्षेयं विहिता।" अष्टस० पृ० २९४ ३. “श्रीमत्तत्त्वार्थशास्त्राद्भुतसलिलनिधेरिद्धरत्नोद्भवस्य, प्रोत्थानारंभकाले सकलमलभिदे शास्त्रकारैः कृतं यत् । स्तोत्रं तीर्थोपमानं प्रथितपृथुपथं स्वामिमीमांसितं तत्, विद्यानन्दः स्वशक्त्या....... -आप्तपरीक्षा का० १२३ पृ० २६२ ४. “इति संक्षेपतः शास्त्रादौ परमेष्ठिगुणस्तोत्रस्य मुनिपुङ्गवैविधीयमानस्य........."प्रपञ्चतस्तदन्वयस्वाक्षेपसमाधानलक्षणस्य श्रीमत्समन्तभद्रस्वामिमिर्देवागमाख्या'तमीमांसायां प्रकाशनात् ।” -आप्तपरीक्षा का० १२० पृ० २६१ 'मोक्षमार्गस्य नेत्तारम्' इत्यादि मंगल श्लोक तत्त्वार्थसूत्रका मंगलाचरण है या नहीं इस विषयमें विद्वानोंमें मतभेद है। कुछ विद्वान् इसे तत्त्वार्थसूत्रका मंगलाचरण मानते हैं, तो दूसरे विद्वान् कहते हैं कि यह सर्वार्थसिद्धिका मंगलाचरण है। किन्तु डा० दरबारीलालजी कोठियाने अनेक प्रमाणोंके आधारसे यह सिद्ध कर दिया है कि उक्त मंगल श्लोक १. 'तत्त्वार्थसूत्रका मंगलाचरण' शीर्षक दो लेख, अनेकान्त वर्ष ५ किरण ६, ७, १०, ११ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001836
Book TitleAptamimansa Tattvadipika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaychandra Jain
PublisherGaneshprasad Varni Digambar Jain Sansthan
Publication Year
Total Pages498
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size9 MB
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