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कारिका-८४]
तत्त्वदीपिका
२७५
ज्ञान होनेपर प्रवृत्ति करनेवाले पुरुषको अर्थक्रियामें किसी प्रकारका विसंवाद नहीं देखा जाता है । जैसे कि इन्द्रियके द्वारा पदार्थका ज्ञान होनेपर अर्थक्रियामें विसंवाद नहीं होता है । इसलिये हेतु शब्दकी तरह जीव शब्दका भी वास्तविक बाह्य अर्थ ( जीव शब्दके अतिरिक्त वस्तुभूत अर्थ ) विद्यमान है । हेतुको माननेवाले सब लोग हेतु शब्दका वास्तविक बाह्य अर्थ मानते हैं । यदि हेतु शब्दका कोई वास्तविक अर्थ न हो, और हेतु शब्द केवल वक्ताके अभिप्रायको सूचित करे, तो हेतु और हेत्वाभासमें कुछ भी भेद नहीं रहेगा। क्योंकि दोनों ही किसी बाह्य अर्थको न कहकर केवल वक्ता के अभिप्रायको कहेंगे । किसी शब्द विषयमें कहीं व्यभिचार ( दोष ) देखकर सर्वत्र व्यभिचारकी कल्पना करना ठीक नहीं है । अन्यथा इन्द्रियज्ञानमें भी एक स्थान में व्यभिचार होनेसे सर्वत्र व्यभिचार मानना होगा । शुक्तिकामें रजतज्ञानके मिथ्या होनेसे रजतमें होनेवाले रजतज्ञानको भी मिथ्या मानना होगा । इसी प्रकार कार्यकारण सम्बन्धमें कहीं व्यभिचार होनेसे सर्वत्र व्यभिचारकी कल्पना ठीक नहीं है, अन्यथा धूमसे अग्निका ज्ञान नहीं हो सकेगा । अग्निकी उत्पत्ति जैसे काष्ठसे होती है, वैसे सूर्यकान्तमणिसे भी होती है । अतः कार्यकारण-सम्बन्ध में भी व्यभिचार देखा जाता है ।
यदि कार्यकारण सम्बन्धके विषयमें यह कहा जाय कि सुपरीक्षित कार्य में कारणका व्यभिचार कभी नहीं देखा जाता है, तो उक्त कथन शब्दके विषयमें भी चरितार्थ होता है । हम कह सकते हैं कि सुपरीक्षित शब्द कभी भी अर्थका व्यभिचारी नहीं होता है । यह अवश्य है कि राग, द्वेष आदि दोषोंसे दूषित वक्ता के विचित्र अभिप्रायके कारण किसी शब्दके अर्थ में व्यभिचार देखा जाता है । जैसे द्वेषादिके कारण किसीने कह दिया कि बच्चो ! दौड़ो, नदीके किनारे लड्डू बट रहे हैं । किन्तु बच्चे जब नदी के किनारे जाते हैं, तो वहाँ लड्डू नहीं मिलते हैं । यहाँ शब्दका अर्थके साथ व्यभिचार है । किन्तु एक स्थानमें व्यभिचार होनेसे सब स्थानोंमें व्यभिचार नहीं माना जा सकता । कहीं-कहीं व्यभिचार तो प्रत्यक्ष और अनुमान में भी पाया जाता है । जब प्रत्यक्ष, अनुमान और शब्द सबमें कहीं-कहीं व्यभिचार पाया जाता है, तो प्रत्यक्ष और अनुमानको अर्थका प्रतिपादक मानना और शब्दको अर्थका प्रतिपादक न मानकर अभिप्रायमात्रका सूचक मानना कहाँ तक ठीक है । क्योंकि युक्ति और न्यायको सर्वत्र समान होना चाहिए ।
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