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________________ आप्तमीमांसा-तत्त्वदीपिका मंगलके पूर्व 'केचिदिदं मंगलवचनमनुमन्यन्ते' शब्दोंके साथ आप्तमीमांसाके किसी व्याख्याकारका 'जयति जगति' आदि समाप्ति मंगल पद दिया है। उससे प्रतीत होता है कि अकलंकसे पूर्व भी आप्तमीमांसापर किसी आचार्यकी व्याख्या रही है। लघु समन्तभद्रने अपने टिप्पणमें वादीभसिंह द्वारा आप्तमीमांसाके उपलालन करनेका उल्लेख किया है । इससे प्रतीत होता है कि वादीभसिंहने आप्तमीमांसापर कोई व्याख्या लिखी थी, किन्तु वह वर्तमानमें अनुपलब्ध है। अचार्य विद्यानन्दने अष्टसहस्रीके अन्त में एक श्लोक लिखा है, जिसमें अपनी अष्टसहस्रीको कुमारसेनकी उक्तियोंसे वर्धमान बतलाया है। इसका तात्पर्य यही है कि कुमारसेन नामक अचार्यने आप्तमीमांसापर कुछ लिखा था, और विद्यानन्दने उससे लाभ उठाया था। उसी श्लोकमें अष्टसहस्रीको कष्टसहस्री भी कहा है। इससे ज्ञात होता है कि अष्टसहस्रीकी रचनामें हजारों कष्टोंको सहन करना पड़ा था। इसका अध्ययन भी कष्टकारी है। अर्थात् कोई जिज्ञासु हजारों कष्ट उठाकर ही अष्टसहस्रीका अध्ययन कर सकता है । आप्तमीमांसाको हिन्दी व्याख्याएँ इसके पहले आप्तमीमांसाकी तीन हिन्दी व्याख्याएँ लिखी गयी हैं १. हिन्दी वचनिका-विक्रमकी उन्नीसवीं शताब्दीके प्रसिद्ध विद्वान् जयपुर निवासी पं० जयचन्द्र जी छावड़ाने विक्रम सम्वत् १८८६ में आप्तमीमांसाकी हिन्दी वचनिका लिखी थी। इसका प्रकाशन ५० वर्ष पूर्व अनन्तकीर्ति ग्रन्थमाला बम्बईसे हुआ था। इसकी भाषा ढढारी ( राजस्थानी हिन्दी ) है। और अब यह प्रायः अप्राप्य है। २. हिन्दी भाष्य-विक्रमकी बीसवीं शताब्दीके प्रसिद्ध साहित्यसेवी तथा समन्तभद्र-भारतीके मर्मज्ञ पं० जुगलकिशोर जी मुख्तारने देवागम अपर नाम आप्तमीमांसाका हिन्दी भाष्य ( मूलानुगामी हिन्दी अनुवाद ) लिखा है। इसका प्रकाशन वीरसेवामन्दिर-ट्रस्टसे सन् १९६७ में हुआ है। ३. हिन्दी विवेचन-श्री पं० मूलचन्द्र जी शास्त्रीने आप्तमीमांसा१. श्रीमता वादीभसिंहेनोपलालितामाप्तमीमांसाम् । अष्टस० टिप्पण पृ० १ २. कष्टसहस्री सिद्धा साष्टसहस्रीयमत्र मे पुष्यात् । शश्वदभीष्टसहस्री कुमारसेनोक्तिवर्धमानार्था । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001836
Book TitleAptamimansa Tattvadipika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaychandra Jain
PublisherGaneshprasad Varni Digambar Jain Sansthan
Publication Year
Total Pages498
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size9 MB
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