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आप्तमीमांसा
[परिच्छेद-१ घटका जो अभाव है, वही घटका प्रध्वंसाभाव है। एक पदार्थका दूसरे पदार्थमें जो सदा अभाव रहता है वह अत्यन्ताभाव है। त्रिकालमें भी चेतन अचेतन नहीं हो सकता और अचेतन चेतन नहीं हो सकता। अतः चेतनका अचेतनमें और अचेतनका चेतनमें जो अभाव है, वह अत्यन्ताभाव है। घट और पटमें अत्यन्ताभाव नहीं हो सकता है, क्योंकि घट और पट पर्यायके नष्ट हो जाने पर घटके परमाणु पटरूप हो सकते हैं और पटके परमाणु घटरूप । अतः घट और पटमें अत्यन्ताभाव न होकर अन्योन्याभाव है।
उक्त चार प्रकारके अभावोंमेंसे यदि अन्योन्याभाव न माना जाय तो सब पदार्थ सबरूप हो जायगे । एक पदार्थका अभाव दूसरे पदार्थमें न रहनेसे घट पटरूप हो जायगा और पट घटरूप हो जायगा। और यदि घट पटरूप है और पट घटरूप, तो घटका काम पटको भी करना चाहिये और पटका काम घटको भी करना चाहिये । किन्तु ऐसा कभी नहीं देखा गया । अतः अन्योन्याभावका सद्भाव मानना आवश्यक है।
प्रागभावके न माननेसे सब पदार्थ अनादि हो जाँयगे । आज जो घट उत्पन्न हुआ वह आज ही क्यों हुआ, इसके पहिले क्यों नहीं हुआ। इसका उत्तर यह है कि आज तक इस घटका प्रागभाव था। यदि प्रागभाव नहीं है तो अनादिकालसे ही घटका सद्भाव होना चाहिये । प्रागभावके अभावमें घटकी उत्पत्तिका कोई प्रश्न ही नहीं है। इस प्रकार प्रागभावके न मानने पर किसी भी पदार्थकी उत्पत्ति नहीं बनेगी और सब पदार्थोंको अनादि मानना पड़ेगा। किन्तु हम देखते हैं कि पदार्थोंकी उत्पत्ति होती है, और कोई भी पदार्थ एकान्तरूपसे अनादि नहीं है । अतः प्रागभावका मानना आवश्यक है।
प्रध्वंसाभावके न माननेसे सब पदार्थ अनन्त हो जाँयगे और किसी भी पदार्थका अन्त नहीं होगा। घटमें पत्थर मारनेसे घट नष्ट हो जाता है, और घटका सद्भाव नहीं रहता। जब प्रध्वंसाभाव ही नहीं है, तो पत्थर मारने पर भी घट नहीं फूटेगा और घटका नाश नहीं होगा। इसी प्रकार अन्य पदार्थोंका भी नाश नहीं होगा। किन्तु हम देखते हैं कि पदार्थोंका अन्त होता है। कोई भी पदार्थ एकान्तरूपसे अनन्त नहीं है । अतः प्रध्वंसाभावका मानना आवश्यक है ।
अत्यन्ताभावके न माननेसे चेतन अचेतन हो जायगा और अचेतन चेतन हो जायगा। पुद्गल चेतन नहीं है, और चेतन पुद्गल नहीं है।
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