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कारिका-९] तत्त्वदीपिका
१०५ होते हैं कारण कार्यकालमें विद्यमान रहता है या नहीं। यदि कारण कार्यकालमें भी विद्यमान रहता है तो अनेक क्षणोंमें रहने के कारण वह क्षणिक नहीं हो सकता । और ऐसी स्थितिमें क्षणभङ्गका भङ्ग अनिवार्य है। और यदि कारण कार्यकालमें नहीं रहता है, तो उस कारणसे कार्यकी उत्पत्ति मानना केवल मिथ्या कल्पना है। नित्य पदार्थमें क्रम और अक्रमसे अर्थक्रिया नहीं हो सकती है। फिर भी नित्यकान्तवादी सांख्य आदि अर्थक्रियाकी मिथ्या कल्पना करते हैं। उसी प्रकार क्षणिक पदार्थमें भी अर्थक्रिया न हो सकने पर भी क्षणिकैकान्तवादी उसमें अर्थक्रियाकी मिथ्या कल्पना करते हैं।
इसलिये स्वामी समन्तभद्राचार्यने ठीक ही कहा है कि एकान्तवादियोंके मतमें, चाहे वे क्षणिकैकान्तवादी हों या अक्षणिकैकान्तवादी, कर्म, कर्मफल, परलोक, मोक्ष आदि कुछ भी नहीं बन सकता है। क्योंकि एकान्तवादमें अर्थक्रियाका होना असंभव है। इसीलिये एकान्तवादी स्ववर वैरी हैं। इसके विपरीत अनेकान्तात्मक वस्तुका प्रतिपादन करनेवाले अर्हन्त स्व और परके कल्याणमें ही प्रवृत्त होते हैं, अतः वही स्तुत्य है।
प्रश्न-पदार्थोका सद्भाव ही है या पदार्थ सत् ही हैं, किसी भी अपेक्षासे असत् नहीं हैं, इस प्रकारका भावैकान्त मानने में क्या दोष है ? इसके उत्तरमें आचार्य कहते हैं :
भावैकान्ते पदार्थानामभावानामपह्नवात् ।
सर्वात्मकमनाद्यन्तमस्वरूपमतावकम् ॥९॥ पदार्थोंका सद्भाव ही है, ऐसा भावैकान्त मानने पर पदार्थोंके अन्योन्याभाव आदि चार प्रकारके अभावका निराकरण होनेसे सव पदार्थ सब रूप हो जायेंगे। इसी प्रकार सब पदार्थ अनादि, अनन्त और स्वरूप रहित भी हो जायेंगे।
अभावके चार भेद हैं-अन्योन्याभाव, प्रागभाव, प्रध्वंसाभाव और अत्यन्ताभाव। एक पदार्थका दूसरे पदार्थमें जो अभाव है उसका नाम अन्योन्याभाव है। घटका अभाव पटमें है और पटका अभाव घटमें है। अथवा घट पटरूप नहीं है और पट घटरूप नहीं है। यह अन्योन्याभाव है । वस्तुकी उत्पत्तिके पहिले जो अभाव रहता है वह प्रागभाव है। घटकी उत्पत्तिके पहिले जो घटका अभाव रहा, वह घटका प्रागभाव है। पदार्थका नाश होनेके बादका जो अभाव है, वह प्रध्वंसाभाव है। घटके फूट जाने पर
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