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आप्तमीमांसा
[परिच्छेद-१ कारण स्मृति चुरा ली जाती है। अतः विपर्यय ज्ञानको स्मृति प्रमोष कहते हैं।
वेदान्तदर्शन ब्रह्मसूत्रके रचयिता बादरायण वेदान्तदर्शनके प्रमुख आचार्य हैं। यथार्थमें वेदोंके अन्तमें जिन शास्त्रोंकी रचना हुई उनका नाम वेदान्त है । वेदोंके अन्तमें जो शास्त्र रचे गये उनको उपनिषद् भी कहते हैं । उपनिषद् शब्द उप तथा नि उपसर्ग पूर्वक षद् धातुसे बना है। षद्का अर्थ है बैठना, उपका अर्थ है निकट । वैदिक ऋषि अपने निकट बैठ हुये शिष्योंको अध्यात्मविद्याके गढ़तम रहस्योंका उपदेश देते थे । उन उपदेशोंका जिनग्रन्थोंमें वर्णन है उनको 'उपनिषद्' नामसे कहते हैं। उपनिषद्का दूसरा नाम वेदान्त है । बादरायणने ब्रह्मसूत्रमें सम्पूर्ण उपनिषदोंका सार संगृहीत किया है । अतः ब्रह्मसूत्रका दूसरा नाम वेदान्त सूत्र भी है। __ब्रह्मसूत्र में चार अध्याय हैं तथा प्रत्येक अध्यायमें चार पाद हैं । ब्रह्मसूत्रपर शंकर, भास्कर, रामानुज आदि अनेक आचार्योंने भाष्यकी रचनाकी है। प्रत्येक आचार्यने भिन्न-भिन्न रूपमें ब्रह्मसत्रके सूत्रोंका अर्थ लगाया है । शंकराचार्यने अपने भाष्यमें अद्वैत ब्रह्म की सिद्धि की है। शंकरका मत अद्वैत वेदान्तके नामसे प्रसिद्ध है। संसारके सब पदार्थ मायिक हैं अर्थात् मायाके कारण ही उनकी सत्ता प्रतीत होती है । जब तक ब्रह्मका ज्ञान नहीं होता है तभी तक संसारकी सत्ता है। जैसे किसी पुरुषको रस्सीमें सर्पका ज्ञान हो जाता है, किन्तु वह ज्ञान तभी तक रहता है जब तक कि यह रस्सी है, सपं नहीं' इस प्रकारका सम्यग्ज्ञान नहीं होता। जिस प्रकार सर्पकी कल्पित सत्ता सम्यग्ज्ञान न होने तक ही रहती है, उसी प्रकार ब्रह्म ज्ञान न होने तक ही संसारकी सत्ता है और ब्रह्मज्ञान होते ही यह जीव अपनी पृथक् सत्ताको खोकर ब्रह्ममें मिल जाता है। नाना जीवों तथा ईश्वरकी सत्ता भी मायाके कारण ही है। यथार्थमें एक ब्रह्म ही सत्य है । संक्षेपमें यही शंकरका मत है।
रामानुजका मत विशिष्टाद्वैतके नामसे प्रसिद्ध है। रामानुजके अनुसार नाना जीवोंकी ब्रह्मासे पृथक सत्ता है। मुक्ति अवस्थामें भी यद्यपि जीव ब्रह्ममें मिल जाता है फिर भी अपने अस्तित्वको खो नहीं देता है। किन्तु उसका पृथक् अस्तित्व बना रहता है । संसारके पदार्थ भी मिथ्या नहीं हैं, उनकी भी सत्ता वास्तविक है। जगत्की सृष्टि करने वाला ईश्वर भी सत्य है । इस प्रकार ब्रह्म अकेला नहीं है किन्तु ईश्वर और नानाजीव
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