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________________ कारिका - ३ ] तत्त्वदीपिका अपना कोई स्वभाव न होनेके कारण वे निःस्वभाव हैं । यही निःस्वभावता शून्यता है । इससे यह प्रतीत होता है कि माध्यमिकों का शून्य तत्त्व भाव पदार्थ है, अभाव नहीं । जिस शून्य तत्त्वका वर्णन नागार्जुनने किया है वह निषेधात्मक अवश्य प्रतीत होता है, परन्तु वह अभावात्मक नहीं है । बहुत कुछ अंशोंमें माध्यमिकोंका शून्य तत्त्व अद्वैतवादियोंके ब्रह्मके समान है । श्रुतियों में ब्रह्मका वर्ण नेति नेति ( निषेध ) के द्वारा किया गया है । नागाजु' भी तत्त्वको आठ निषेधोंसे रहित बतलाया है' । परमार्थ तत्त्व अनिरोध, अनुत्पाद, अनुच्छेद, अशाश्वत, अनेकार्थ, अनानार्थ, अनागम तथा अनिर्गम है । सब धर्मोकी निःस्वभावता ही परमार्थ तत्त्व है । इसके ही शून्यता, तथता, भूतकोटि और धर्मधातु पर्यायवाची शब्द हैं । इस प्रकार बौद्धदर्शनके चार मतों का वर्णन ऊपर किया गया है । इन मतोंके सिद्धान्तों का वर्णन निम्न श्लोकमें बड़ी सुन्दर रीतिसे किया गया है ४९ मुख्य माध्यमिको विवर्तमखिलं शून्यस्य मेने जगत् । योगाचारमते तु सन्ति मतयस्तासां विवर्तोऽखिलः ॥ अर्थोऽस्ति क्षणिकस्त्वसावनुमितो बुद्धचेति सौत्रान्तिकः । प्रत्यक्षं क्षणभंगुरं च सकलं वैभाषिको भाषते ॥ —मानमेयोदय पृ० ३०० । हीनयान और महायान यानका अर्थ है मार्ग । हीनयानका अर्थ है छोटा या अप्रशस्त मार्ग । और महायानका अर्थ है बड़ा या प्रशस्त मार्ग । महायानके अनुयायियोंका कहना है कि जीवको अन्तिम लक्ष्य तक पहुँचाने में यही मार्ग सबसे अच्छा है । अतः ये अपने मतको महायान कहने लगे और इससे भिन्न थेरवाद या स्थविरवादको उन्होंने हीनयान कहा । हीनयान और महायानकी विशेषता निम्नप्रकार है ૪ १. अनिरोधमनुत्पादमनुच्छेद मशाश्वतम् । अनेककार्थमनानार्थमनागममनिर्गमम् ॥ -- माध्यमिकका ० १ । १ । २. सर्वधर्माणां निःस्वभावता, शून्यता, तथता, भूतकोटिः, धर्मधातुरिति पर्यायाः । सर्वस्य हि प्रतीत्यसमुत्पन्न स्य पदार्थस्य निःस्वभावता पारमार्थिकं रूपम् । - बोधिचर्या० पृ० ३५४ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001836
Book TitleAptamimansa Tattvadipika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaychandra Jain
PublisherGaneshprasad Varni Digambar Jain Sansthan
Publication Year
Total Pages498
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size9 MB
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