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________________ कारिका-३] तत्त्वदीपिका २१ कणादका प्रधान लक्ष्य धर्मकी व्याख्या करना है। धर्म वह है जिसके दारा अभ्युदय और निःश्रेयसको सिद्ध हो। किरणावली और उपस्कारव्याख्याके अनुसार अभ्युदयका अर्थ तत्त्वज्ञान और निःश्रेयसका अर्थ मोक्ष है। मुक्ति वैशेषिकदर्शनमें मुक्तिकी कल्पना नैयायिकदर्शनकी तरह ही है। अर्थात् मुक्तिमें दुःखोंका आत्यन्तिक नाश हो जाता है और आत्मा अपने विशेष गुणोंसे रहित हो जाती है। मुक्तिकी प्राप्तिका मार्ग निम्न प्रकार है--निवृत्ति लक्षण धर्मविशेषसे साधर्म्य और वैधय॑के द्वारा द्रव्यादि छह पदार्थोका जो तत्त्वज्ञान उत्पन्न होता है उससे निःश्रेयसकी प्राप्ति होती है। सांख्यदर्शन सांख्य नामकरणका कारण संख्या शब्द है। संख्याको नितान्त मूलभूत सिद्धान्त होनेके कारण यह दर्शन सांख्यदर्शनके नामसे प्रसिद्ध हुआ। संख्याका अर्थ गणना नहीं है, किन्तु सम्यख्याति-सम्यक्ज्ञान--विवेकज्ञान है । अर्थात् प्रकृति-पुरुषविवेकके अर्थमें संख्या शब्दका प्रयोग हुआ है। महाभारतमें सांख्य शब्दकी यही प्रामाणिक व्याख्या की गयी है । प्रकृति तथा पुरुषके पारस्परिक भेदको न जाननेके कारण इस दुःखमय जगत्की सत्ता है और जिस समय प्रकृति और पुरुषमें भेदविज्ञान हो जाता है उसी समय दुःखकी आत्यन्तिक निवृत्ति हो जाती है। संख्याका अर्थ आत्माके विशुद्धरूपका ज्ञान भी किया गया है। सांख्यदर्शनके रचयिताका नाम कपिल मुनि है। सांख्य तत्त्वमीमांसा सांख्यदर्शनके अनुसार तत्त्व २५ होते हैं। इन तत्वोंके जाननेसे किसी १. यतोऽभ्युदयनिःश्रेयससिद्धिः स धर्मः । -वै० सू०१।१२। २. दग्धेन्धनानलवदुपशमो मोक्षः। -प्र० पा० भा० पृ० १४४ । ३. धर्म विशेषप्रसूताद् द्रव्यगुणकर्मसामान्य विशेषसमवायानां साधर्म्यवैधाभ्यांतत्त्वाज्ञानान्निःश्रेयसम् । -वै० सू० १।१।४ । ४. दोषाणां च गुणानां च प्रमाणप्रविभागतः । कञ्चिदर्थमभिप्रेत्य सा संख्येत्युपधार्यताम् । ---महाभारत ५. शुद्धात्मतत्त्वविज्ञानं सांख्यमित्यभिधीयते। --शांकरविष्णुसहस्रनामभाष्य । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001836
Book TitleAptamimansa Tattvadipika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaychandra Jain
PublisherGaneshprasad Varni Digambar Jain Sansthan
Publication Year
Total Pages498
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size9 MB
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