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________________ कारिका-३] तत्त्वदीपिका दण्डरूपका भी अन्वय-व्यतिरेक सिद्ध होता है। अतः दण्डरूप घटके प्रति अन्यथासिद्ध होता है। ३. घटके प्रति आकाश अन्यथासिद्ध है। आकाश शब्दका समवायीकारण है। शब्दके प्रति आकाशमें पूर्ववृत्तित्व है। आकाश शब्दके प्रति पूर्ववर्ती हो सकता है। अतः आकाश घटके प्रति अन्यथासिद्ध है। ___४. घटके प्रति कुम्भकारका पिता अन्यथासिद्ध है। कुम्भकारका पिता कुम्भकारका पूर्ववर्ती है। वह कुम्भकारका पूर्ववर्ती होकर ही घटका पूर्ववर्ती हो सकता है। अतः वह घटके प्रति अन्यथासिद्ध है। ___५. घटके प्रति कुम्भकारका गदहा अन्यथासिद्ध है। कारण कार्यका नियमसे पूर्ववर्ती होता है। अतः नियत पूर्ववर्तीसे भिन्न जो भी है वह अन्यथासिद्ध है। ईश्वर और वेद न्यायदर्शन ईश्वरको जगत्का कर्ता मानता है । उदयनाचार्यने न्याय कुसुमाञ्जलिमें ईश्वरकी सिद्धि कुछ युक्तियोंसे की है। ईश्वर सर्वशक्तिमान् है। उसीकी प्रेरणसे यह संसारी जीव स्वर्ग या नरकमें जाता है । ईश्वर वेदका भी कर्ता है अतएव ईश्वरकृत होनेसे वेद पौरुषेय है । १. येन सह पूर्वभावः कारणमादाय वा यस्य । अन्यं प्रति पूर्वभावे ज्ञाते यत्पूर्वभावविज्ञानम् ॥ जनकं प्रति पूर्ववृत्तितामपरिज्ञाय न यस्य गृह्यते । अतिरिक्तमथापि यद्भवेन्नियतावश्यकपूर्वभाविनः ।। एते पञ्चान्यथासिद्धा दण्डत्वादिकमादिमम् । घटादौ दण्डरूपादि द्वितीयमपि दर्शितम् ।। तृतीयं तु भवेद् व्योम कुलालजनकोऽपरः । पञ्चमो रासभादिः स्यादेतेष्वावश्यकस्त्वसौ ।। --कारिकावली का० ११-२२ । २. कार्यायोजनधृत्यादेः पदात् प्रत्ययतः श्रुतेः । वाक्यात संख्याविशेषाच्च साध्यो विश्वविदव्ययः ।। --न्यायकुसुमाञ्जलि ५।१ । ३. अज्ञो जन्तुरनीशोऽयमात्मनः सुखदुःखयोः । ईश्वरप्रेरितः गच्छेत् स्वर्ग वा श्वभ्रमेव वा ॥ -महाभा० वनपर्व ३०१२ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001836
Book TitleAptamimansa Tattvadipika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaychandra Jain
PublisherGaneshprasad Varni Digambar Jain Sansthan
Publication Year
Total Pages498
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size9 MB
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