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________________ कारिका-३ तत्त्वदीपिका कार्यकारणसिद्धान्त न्यायदर्शन कारण भिन्न है और कार्य भिन्न । न्याय सांख्यकी तरह कार्यको कारणसे अभिन्न न मानकर भिन्न मानता है। कार्यकारणके विषयमें सांख्यका मत सत्कार्यवादके नामसे प्रसिद्ध है और न्यायमत असत्कार्यवादके नामसे अथवा आरंभवादके नामसे प्रसिद्ध है। ___कार्यसे पहले जिसका सद्भाव निश्चित हो तथा जो अन्यथासिद्ध न हो उसे कारण कहते हैं। कारणके तीन भेद हैं-समवायीकारण, असमवायीकारण और निमित्तकारण। ___ समवायसम्बन्धसे जिसमें कार्यकी उत्पत्ति होती है वह समवायीकारण है। जैसे तन्तु वस्त्रका समवायीकारण है। क्योंकि समवायसम्बन्धसे तन्तुओंमें ही पटकी उत्पत्ति होती है । कपाल घटका समवायी कारण है। क्योंकि समवाय सम्बन्धसे कपालोंमें ही घटकी उत्पत्ति होती है। ___कार्यके साथ अथवा कारणके साथ एक वस्तुमें समवाय सम्बन्धसे रहते हुए जो कारण होता है वह असमवायीकारण है। जैसे तन्तुसंयोग वस्त्रका असमवायीकारण है और तन्तुरूप पटरूपका असमवायीकारण है। असमवायीकारणकी समवायीकारणमें प्रत्यासत्ति ( आसन्नता-निकटता) होती है। वह प्रत्यासत्ति दो प्रकारकी होती हैं"-कार्यैकार्थप्रत्या १. यस्य कार्यात् पूर्वभावो नियतोऽनन्यथासिद्धश्च तत्कारणम् । तर्कभाषा, पृ० ५। अन्यथासिद्धिशून्यस्य नियता पूर्ववर्तिता। कारणत्वं भवेत्तस्य त्रैविध्यं परिकीर्तितम् ॥ -कारिकावली का० १६ । २. यत्समवेतं कार्यमुत्पद्यते तत् समवायिकारणम् । यथा तन्तवः पटस्य समवायिकारणम् । -तर्क भाषा, पृ० ६ । ३. यत्समवायिकारणप्रत्यासन्नमवधृतसामर्थ्य तदसमवायिकारणम् । यथा तन्तुसंयोगः पटस्यासमवायिकारणम् । एवं तन्तुरूपं पटरूपस्यासमवायिकारणम् । -तर्क भाषा, पृ० १० । यत्समवेतं कार्यं भवति ज्ञयं तु समवायि जनकं तत् । तत्रासन्न जनकं द्वितीयमाभ्यां परं तृतीयं स्यात् ॥ -कारिकावली, का० १८ । ४. अत्र समवायिकारणे प्रत्यासन्नं द्विविधं कार्यैकार्थप्रत्यासत्या कारणैकार्थ प्रत्यासत्या च । आद्य यथा घटादिकं प्रति कपालसंयोगादिकमसमवायिकारणम् । तत्र कार्येण घटेन सह कारणस्य कपालसंयोगस्यैकस्मिन् कपाले Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001836
Book TitleAptamimansa Tattvadipika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaychandra Jain
PublisherGaneshprasad Varni Digambar Jain Sansthan
Publication Year
Total Pages498
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size9 MB
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