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आप्तमीमांसा-तत्त्वदीपिका
३३०
संज्ञात्व हेतुमें व्यभिचार-दोषका संसारका कर्ता ईश्वर नहीं है ३०३ निराकरण
२७६ जीवकी शुद्धि और अशुद्धि नामक वक्ता आदिके बोध आदिको पृथक शक्तियाँ पृथक् व्यवस्था
२७८ प्रमाणका लक्षण और उसके भेद प्रमाण और प्रमाणाभासकी निर्दोष व्यवस्था
स्मृति, प्रत्यभिज्ञान और तर्कमें दैवसे अर्थसिद्धिके एकान्तकी सदो- प्रमाणताकी सिद्धि ३२० षता २८३ प्रमाणका फल
३२४ पौरुषसे अर्थसिद्धिके एकान्तकी 'स्यात्' शब्दका अर्थ तथा कार्य ३२६ सदोषता २८४ वाक्यका लक्षण
३२९ उभयकान्त तथा अवाच्यतैकान्तकी स्याद्वादका स्वरूप सदोषता
स्याद्वाद और केवलज्ञानमें भेदकी दैव और पौरुषसे अर्थसिद्धिकी अपेक्षा
३३१ निर्दोष विधि
२८६ हेतु और नयका लक्षण ३३३ परमें दुःख-सुखसे पाप-पुण्यके नैगम आदि सात नयोंका स्वरूप एकान्तकी सदोषता २८८
३३६ स्वमें दुःख-सुखसे पुण्य-पापके द्रव्यका स्वरूप
३३८ एकान्तकी सदोषता २८९ निरपेक्ष और सापेक्ष नयोंकी स्थिति उभयैकान्त तथा अवाच्यतैकान्तकी सदोषता
२८९ वाक्यके द्वारा अर्थके नियमनकी पुण्य और पापके बन्धकी निर्दोष व्यवस्था
३४० व्यवस्था
२९० केवल विधि द्वारा अर्थका नियमन अज्ञानसे बन्ध तथा अल्प ज्ञानसे मानने में दोष
३४१ मोक्ष मानने में दोष २९३ केवल प्रतिषेध द्वारा अर्थका नियउभयैकान्त तथा अवाच्यतैकान्त- नम मानने में दोष ३४२ की सदोषता
२९९ अन्यापोहका निराकरण तथा अभिबन्ध और मोक्षकी निर्दोष व्यवस्था प्रेत-विशेषकी प्राप्तिका साधन ३४२
२९९ स्याद्वाद-संस्थिति ३४३ कर्मबन्धके अनुसार संसारकी आप्तमीमांसाकी रचनाका प्रयोजन व्यवस्था ३०२
३४४
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