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________________ विषय-अनुक्रमणिका नाशको निर्हेतुक माननेमें दोष २१७ कार्य-कारणमें सर्वथा अभेदका हेतुसे विसदृश पदार्थकी उपत्ति निराकरण २४३ __ मानने में दोष २१८ उभयकान्त तथा अवाच्यतैकान्तकी संवतिरूप स्कन्धसन्ततिमें स्थिति सदोषता २४४ आदिका निषेध २२१ और में एकत्व और उभयकान्त तथा अवाच्यतैकान्त नानात्वकी निर्दोष व्यवस्था ___को सदोषता २२२ २४४ एक ही वस्तुमें नित्यत्व और क्षणि- आपेक्षिक सिद्धि और अनापेक्षिक ___ कत्वकी निर्दोष व्यवस्था २२२ सिद्धिके एकान्तोंकी सर्दोषता वस्तुमें उत्पादादि त्रयकी निर्दोष २४८ “विधि २२५ उभयकान्त तथा अवाच्यतैकान्तकी उत्पादादि त्रयमें भिन्नता और सदोषता २५० __ अभिन्नताकी सिद्धि २२७ लौकिक दृष्टान्त द्वारा वस्तुमें सापेक्ष और निरपेक्ष सिद्धिकी निर्दोष व्यवस्था २५१ उत्पादादि त्रयकी सिद्धि २२९ लोकोत्तर दृष्टान्त द्वारा वस्तुमें सर्वथा हेतुसिद्ध और आगमसिद्ध उत्पादादि त्रयकी सिद्धि २३० एकान्तोंकी सदोषता २५३ कार्य-कारण आदिमें सर्वथा उभयकान्त तथा अवाच्यतैकान्तभिन्नताका एकान्त और को सदोषता २५५ उसका निराकरण २३२ हेतु तथा आगमसे निर्दोष सिद्धिकी सर्वथा भेदैकान्तमें कार्य-कारण विधि २५६ आदिकी भिन्नदेश और भिन्न- वेदमें अपौरुषेयत्वका निराकरण कालमें स्थितिका प्रसंग २३४ २५८ अवयव-अवयवी आदिमें समवायका अंतरंगार्थतैकान्तकी सदोषता २६२ निषेध २३५ अनुमानसे विज्ञप्तिमात्रताकी नित्य, व्यापक और एक सामान्य सिद्धि मानने में दोष २६४ तथा समवायका निराकरण बहिरंगार्थतैकान्तकी सदोषता २३६ २६८ सामान्य और समवायका परस्पर उभयकान्त तथा अवाच्यतैकान्तकी में तथा अर्थके साथ सम्बन्ध- सदोषता २६९ का निषेध २३९ प्रमाण और प्रमाणाभासके विषयमें अनन्यतैकान्तकी सदोषता २४० अनेकान्तकी प्रक्रिया २७० कार्यकी भ्रान्तिसे कारणकी भ्रान्ति संज्ञात्व हेतुसे जीव तत्त्वकी सिद्धि का प्रसंग २४१ २७३ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001836
Book TitleAptamimansa Tattvadipika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaychandra Jain
PublisherGaneshprasad Varni Digambar Jain Sansthan
Publication Year
Total Pages498
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size9 MB
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