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________________ [ ६ ] के श्रीमन्त सेठ भगवानदास शोभालालजी सागर, श्री सेठ रूपचन्दजी बीड़ीवाले विदिशा, श्री पं० गुलाबचन्द्रजो दर्शनाचार्य, एम० ए०, जबलपुर तथा सतना, कटनी और बीनाके अपने मित्रोंसे सम्पर्क स्थापित किया। परिणामस्वरूप इस ग्रन्थके प्रकाशनके लिए उक्त तथा दूसरे महानुभावोंसे दानस्वरूप जो द्रव्य प्राप्त हुआ उसके लिए हम उनके विशेष आभारी हैं। द्रव्य-दाताओं द्वारा प्राप्त दानकी सूची पृथक्से मुद्रित है । हर्षकी बात है कि भगवान् महावीरकी पच्चीसवीं निर्वाण-शताब्दी वर्षमें वर्णी-शताब्दीके अवसर पर वर्णी-संस्थान द्वारा इसका प्रकाशन हआ है। यह वर्णी-संस्थानका प्रथम प्रकाशन है। आशा है राष्ट्रभाषामें लिखित इस महत्त्वपूर्ण दार्शनिक कृतिका दर्शनके अध्येताओं द्वारा समुचित समादर होगा । मुझे पूर्ण विश्वास है कि अभीतक आप्तमीमांसा पर हिन्दीमें जो व्याख्याएँ लिखी गयी हैं उनमें इस व्याख्याकी कुछ महत्वपूर्ण ऐसी विशेषताएँ हैं जिनके कारण यह सबके लिए लाभप्रद तथा प्रिय होगी। और अन्य दार्शनिक विद्वान् भी इसका समुचित मूल्यांकन कर जैनदर्शनकी दार्शनिक मीमांसाको अनुगम करने में समर्थ होंगे। वाराणसी २५-१-७५ फूलचन्द्र शास्त्री उपाध्यक्ष श्री गणेश वर्णी दि० जैन संस्थान Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001836
Book TitleAptamimansa Tattvadipika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaychandra Jain
PublisherGaneshprasad Varni Digambar Jain Sansthan
Publication Year
Total Pages498
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size9 MB
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