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प्रथमं परिशिष्टम्
'कथारत्नाकरग्रन्थान्तर्गतानाम् प्राकृतादिपद्यानाम् अकारादिसूचिः । छासी छमको छांहडी
जं किर विहिणा लिहियं
जयसिरिवंछियसुहए जलमज्झे मच्छपयं
जह गुणठाणं नाणं
जह जणणी बालाणं,
जह लोहसिला
अक्खाण रसणी कम्माण
गुणगुण
अण्णं रमइ निरिक्खइ अण्णं
अन्नं रमइ निरिक्खइ अन्नं रम्मइ निरिक्खइ
अरथने आदर छे
अलियं जंपेइ जणो
अवलोअणे सहस्सं
आदर एथ अपार
उदंरथी ऊघसइ कानि
उपभुंजिरं न आणेइ उर अंतर वाहण कप्पासहसारिच्छडा
कर कंपावर सिर धुणइ
कवडाणं केलिकुलं कहि किम कुक्करसमवडिइ काली काठी कूतरा
कालो कंबल अने कुंकुम कज्जल केवडो
कुकट्ठ अने कुहाडि
कोहो पीइं पणासेइ
क्युं रे वेश्या बप्पडी
खांडुं खेती खीचडी
गंगाए नाविओ नंदो
गिरुआ सहजइ गुणकरइ गुरुणापि समं हास्यं गोहु गोरस गोरडी
घणमूलं वावारो
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जाइकलियं न इच्छसि
जाई विज्जा रूवं
जिण दिन रावण
जिण दीठे मुनिमन चले जिणभवणबिंब
जिमउं नागला
जिसका काम तिसेकुं छाजे
जिसी कणक तिस्यउ रोटलो
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घरि सूरा मढि पंडिआ
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घारी घेवरी घीअरस
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धणमिव चितं धम्मं
चुडो चमरी चुन्दडी
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धणमिव चितइ धम्मं
१. इदमत्र ज्ञेयम्-अत्रनिर्दिष्टपृष्ठाङ्क सङ्ख्यामध्ये ओक - द्वि- हानिवृद्धिरपि सम्भाव्यते ।
कुहहिणं
जे कुलीन के कांण
जस लगइ सहावडा
जो कुणइ हिअं कज्जं डिभाणरवो
तं चरिअं दट्ठू
तावइअं चिअ जंयह
तिक्कम तिय नवि
तिणि मुखि अवाज
तुच्छावि रमणीजाई
तुह जणओ मह पिउणो
तेहिज अक्षर तेज पय
दाणं सोहग्गकरं
दैव विलग्गो जेहने
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